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2 द्रव्य में प्रोव्य और परिवर्तनीय दोनों धर्म होते हैं। उन्हें कभी पृथक नहीं किया जा सकता।
3 घ्रौव्य और परिवर्तनीय धर्म अभिवक्त होते हुए भी अपने-अपने स्वभाव में रहते हैं, इसलिए द्रध्य की नित्यता और अनित्यता में कोई निरोध नहीं है ।
4 अस्तित्व और नास्तित्व भी सापेक्ष हैं । वे एकदूसरे के विरोधी नहीं हैं।
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हम द्रव्य को एक धर्म के माध्यम से जानते हैं, समग्र द्रव्य को नहीं जान सकते ।
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6 हम एक क्षण में द्रव्य के एक ही धर्म का प्रतिपादन कर सकते हैं ।
7 धर्मों की निरपेक्षता मानने से विरोध की प्रतीति होती है । सापेक्षता से विरोध का परिहार हो जाता है ।
इन सूत्रों के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि अनेकान्त और स्वाद्वाद का जितना दार्श निक मूल्य है, उतना ही आध्यात्मिक और अहिंसात्मक मूल्य है।
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