________________
सीता के कारण रावण एवं राक्षसों के विनाश की भविष्यवाणी कर देते हैं
तेहिं हणेवउ रक्खु महारगे । जग राहिव तणयहें कारणे । और
आहे कण्णहें कारणेण होइस । विणासु बहु-रक्त हूँ |
वन में सीता के चरित्र का विकास मौन रूप में होता है । सीता युद्धों के विपरीत है
कर चलण देह - सिर- खण्डणहु । निव्त्रिण माए हउं भण्डण ॥ हउं ताएं दिण्णी केहाहुं । कलि-काल-कियन्तहुं जेहाहुँ ||
सीता हरण के समय वह अपने को बड़ी अभागिनी मानती है
को संथवई मई को सुहि कहीं दुक्खु महन्तउ | जहिं जहि नामि हउं तं तं जि पएसु पलित्तउ ॥
रावण के प्रलोभनों तथा उपसर्गों से सीता का हिमालय जैसा अचल और गंगा जल जैसा पवित्र चरित्र रंचमात्र भी विचलित नहीं हो पाया । सीता अग्नि परीक्षा में सफल होती है
कि किजइ अण्णइ दिव्वे, जेण विसुज्झहो महु मणहो । जिह कणय लालि डाहुत्तर, अच्छणि मज्झे आरहण हो ॥
अंत में सीता का विरागी मन स्त्री न बनने की घोषणा कर देता है
एवहि तिह करेमि पुणु रहुवइ । जिह ण होमि पडिवारी तियमइ ||
Jain Education International
स्वयंभू ने सीता के चरित्र को अनुपम तथा दिव्य स्वरूप प्रदान किया है ।
जैन - राम - साहित्य में सीता- निर्वासन प्रसंग :
राम कथा के समान सीता- निर्वासन के आख्यान को भी प्रस्तुत करने का सर्वप्रथम श्रेय महर्षि वाल्मीकि को है ।
गुणभद्र के 'उत्तर पुराण' में सीता-त्याग की कोई चर्चा नहीं मिलती । इसकी श्रृंखला में महाभारत, हरिवंश पुराण, वायु पुराण, विष्णु पुराण, नृसिंह पुराण और अनायक जातकं भी आते हैं जिनमें सीतानिर्वासन आख्यान का अभाव है । परन्तु सीता-त्याग को अधिकांश जैन राम - साहित्य स्वीकार करता है ।
सीता - निर्वासन के मुख्य चार कारण थे
(क) लोकात्पवाद - जैन - राम साहित्य में इसका प्रतिपादन विमल सूरि के 'पउम चरियं' तथा रविषेण के 'पद्म चरित' में मिलता है । स्वयंभू ने अपने महाकाव्य 'पउम चरिउ' में इसकी पृष्ठभूमि का विश्लेषण करते हुए लिखा है : अयोध्या की कतिपय पुश्चली नारियों ने अपने पतियों के समक्ष यह तर्क किया कि यदि इतने दिनों तक रावण के यहाँ रहकर आनेवाली सीता राम को ग्राह्य हो सकती है तो एक-दो रात अन्यत्र बिता कर उनके घर लौटने में पतियों को आपत्ति क्यों हो ? - इस चर्चा को लेकर नगर में सीताविषयक प्रवाद फैलता है
पर-पुरिसु रमेवि दुम्भहिलउ, देंति
पडुत्तर पह-य हो । कि रामण भुजइ जणय-सुय, afry वसेवि धरे रामण हो ।
राम कुल की मर्यादा के
कारण सीता को निष्कासित कर देते हैं । 'पउम चरिउ' अनेक मार्मिक तथा भावप्रवण प्रसंगों से परिपूर्ण है परन्तु सीता-त्याग का
२४३
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org