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गुहा मन्दिर और विशाल तीर्थ कर प्रतिमा समूह भारतीय पुरातत्व की अद्वितीय उपलब्धि हैं । बाबर के शासन काल में खण्डित ये जैन प्रतिमाएँ आज भी आकर्षक एवं मनोज्ञ स्वरूप लिये हैं तथा इनका अत्यधिक ऐतिहासिक एवं पुरातत्विक महत्व है । उरवाई द्वार पर स्थित आदिनाथ की प्रतिमा इस सम्पूर्ण मध्य भारतीय क्षेत्र में स्थित विशालतम प्रतिमा है तथा एक पत्थर की बावड़ी पर स्थित गुहा मन्दिर एवं विशाल मूर्तियों का समूह देश में अद्वितीय है । इतनी विशाल प्रतिमाएँ इतनी बड़ी संख्या में एक स्थान पर एक साथ कहीं नहीं मिलतीं ।
ग्वालियर में बने जैन मन्दिरों में भी अनेकों प्राचीन एवं भव्य मन्दिर हैं, जिनमें प्राचीन प्रतिमाएँ एवं साहित्य उपलब्ध है । इस प्रकार ग्वालियर नगर स्वयं भी जैन संस्कृति का एक प्रमुख केन्द्र रहा है तथा उसके सांस्कृतिक विकास में जैनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही
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नरवर
शिवपुरी जिले में शिवपुरी से 40 किलोमीटर उत्तर-पूर्व स्थित नरवर नगर नल और दमयन्ती के काल में नल द्वारा बसाया गया नगर माना जाता है । प्राचीन उल्लेखों में इसे नलपुर कहा गया गया है । यहाँ अनेक जैन मन्दिरों और मूर्तियों का निर्माण हुआ । इन मन्दिरों और मूर्तियों के उपयोग में आए श्वेत पाषाण पर यहाँ इतना अच्छा पालिश किया गया कि वह संगमरमर-सा दिखता है । नरवर के यज्वपाल, गोपाल देव और आसल्ल देव नामक राजाओं ने कला के विकास में व्यापक योग दिया। तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी में नरवर और इसके आसपास जैन धर्म का
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बहुत प्रसार हुआ । वि. सं. 1314 से 1324 के मूर्तिलेखों युक्त सैकड़ों जैन मूर्तियाँ नरवर में प्राप्त हुई हैं । जज्ववेल राजाओं के अधिकांश शिलालेखों के प्रशस्तिकार जैन मुनि हैं । यहाँ के बड़े जैन मन्दिर में वि. सं. 1475 ( सन् 1418 ई.) का एक ताम्रपत्र भी उपलब्ध है जिसमें महाराजाधिराज वीरमेन्द्र तथा उनके मंत्री साधु कुशराज का उल्लेख है । नरवर के जैन मन्दिरों में जैन साहित्यकारों की अनेकों प्राचीन रचनाएँ व धर्मग्रन्थ भी उपलब्ध होते हैं जो इस क्षेत्र में जैन संस्कृति के विकास के अध्ययन की दृष्टि से महत्व - पूर्ण हैं ।
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चन्देरी ( गुना )
गुना जिले में चन्देरी और तुमैन जैन कला के महत्वपूर्ण केन्द्र थे । चन्देरी में अनेकों प्राचीन एवं विशाल जैन मन्दिर स्थित हैं । चन्देरी और उसके समीपवर्ती क्षेत्र में इस काल की पाषाण मूर्तियाँ बहुत बड़ी संख्या में प्राप्त हुई हैं । उनमें तीर्थंकरों और देवियों के अतिरिक्त अन्य मूर्तियाँ भी हैं, जिनमें बहुत-सी अभिलिखित हैं । लगभग 1400 ई. में चन्देरी पट्ट की स्थापना हुई। श्री भट्टारक देवेन्द्र कीर्ति और उनके उत्तराधिकारियों ने उस क्षेत्र में जैन धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । विदिशा जिले का सिरोंज, चन्देरी के भट्टारकों के कार्यक्षेत्र में आता था । इन मन्दिरों में बहुत-सा प्राचीन साहित्य एवं अभिलेख भी उपलब्ध है ।
उपलब्ध प्रचुर सामग्री के संरक्षण एवं शोध की आवश्यकता
इस प्रकार ग्वालियर और उसके निकटवर्ती क्षेत्रों में जैन संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार रहा है, और
5. जैन कला एवं स्थापत्य, खण्ड 1, भाग 6, भारतीय ज्ञानपीठ; वास्तु स्मारक एवं मूर्तिकला ( 1300 से 1800 ई.) अध्याय 27 - मध्य भारत, पृष्ट 356 1
6. जैन कला एवं स्थापत्य, खण्ड 2, अध्याय 27, मध्य भारत पृष्ठ 356 भारतीय ज्ञानपीठ ।
भाग 6, वास्तु स्मारक एवं मूर्तिकला ( 1300 से 1800 ई.)
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