Book Title: Tirthankar Mahavira Smruti Granth
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Jivaji Vishwavidyalaya Gwalior

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Page 359
________________ - गोपादौ देवपत्तने वि० सं० 1469 (सन् 1412 ई० ) में कुन्दकुन्दाचार्य के प्रवचनसार की आचार्य अमृत चन्दकृत "तत्वदीपिका " टीका की एक प्रतिलिपि वीरमेन्द्रदेव के राज्यकाल में ग्वालियर में की गई थी। इसके प्रतिलिपि काल और प्रतिलिपि स्थल के विषय में उसमें निम्न लिखित पंक्तियां प्राप्त होती हैं - विक्रमादित्य राज्येऽस्मिश्चतुर्दपरेशते । नवषष्ठ्या युते किंनु गोपाद्री देवपत्तने ॥ वीरमेन्द्रदेव ग्वालियर के तोमर राजा (सन् 14021423 ई० ) थे और टीका के प्रतिलिपिकार ने उनके गढ़ गोपाद्रि को "देवपत्तन" कहा है । कुछ जैन तीर्थमालाओं में भी ग्वालियर का उल्लेख प्रसिद्ध जैन तीर्थ के रूप में किया गया है ।" इन उल्लेखों से ऐसा ज्ञात होता है कि कभी ग्वालियर की गणना प्रसिद्ध जैन तीर्थों में की जाती थी और जैन धर्मावलम्बियों के लिए वह "देवपत्तन" था । 1. गढ़ गवालेर वावन गज प्रतिभा बन्दु ऋषभ रंगरोली जी ॥ 14 बाबन गज प्रतिमा गढ़ गुवालेरि सदा सोभती ॥33॥ Jain Education International ग्वालियर की वह महिमा अब नहीं रही है । वह महिमा किस प्रकार उपलब्ध हुई थी और वह फिर किस प्रकार नष्ट हो गई इसके इतिहास की खोज अभी तक सम्यक् रूप से नहीं की गई है, यद्यपि इस कार्य को सम्पन्न करने के लिये बहुत अधिक सामग्री अभी भी उपलब्ध है । इस विषय से सम्बद्ध इतने अधिक शिलालेख, मूर्तिखण्ड तथा साहित्यिक उल्लेख प्राप्त होते हैं कि उनकी ओर अब तक समर्थ विद्वानों का ध्यान आकर्षित होना चाहिये था । उस सामग्री के आधार पर न केवल उत्तरी मध्यप्रदेश में जैन धर्म के विकास का इतिहास सुपुष्ट रूप से लिखा जा सकता है, वरन् उस प्रदेश के मध्ययुग का राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास भी प्रामाणिक रूप से जाना जा सकता है । ३२५ तोमरों के इतिहास की सामग्री की खोज करते समय मुझे ऐसा ज्ञात हुआ कि अब तक हम जिस सामग्री को इतिहास - निर्माण का प्रमुख आधार मान कर चले हैं, वह बहुत प्रामाणिक नहीं है। इस क्रम में यह धारणा भी पुष्ट हुई है कि समकालीन जैन साहित्य * हरिहरनिवास द्विवेदी ॥ सौभाग्य विजय तीर्थमाला, पृ० 98 । - तीर्थमाला, पृ० 111। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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