Book Title: Tirthankar Mahavira Smruti Granth
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Jivaji Vishwavidyalaya Gwalior

View full book text
Previous | Next

Page 390
________________ नामक ग्रन्थ की रचना की। इसमें श्रावकों की त्रेपन कदा अवसर प्राप्त होने पर जैन धर्मावलम्बी अपनी धार्मिक क्रियाओं का सरल व सुन्दर भाषा में वर्णन किया गया गतिविधियों को संचालित करते रहे। दौलतगंज में बना है। इसके अन्त में वे लिखते हैं कि हुआ पार्श्वनाथ मन्दिर लगभग इसी काल में निर्मित हुआ। इसके अतिरिक्त अन्य किसी मन्दिर आदि के निर्माण के ए त्रेपन विधि करहु क्रिया भव पाप समूहन चूरे हो। संबंध में कोई विवरण प्राप्त नहीं है। सोरह से सठि समच्छर कातिक तीज अन्धियारी हो। भट्टारक जगभूषण चेला ब्रह्मगुलाल विचारी हो ।। इधर 18वीं शताब्दि के उत्तराद्ध के प्रारंभ से ही ब्रह्मगुलाल विचारि बनाई गढ़ गोपाचल थाने । मरठे लोग अत्याधिक शक्तिशाली हो उठे और दिल्ली छत्रपति चहु चक विराजे साहे सलेम मुग लाने ।। 1 ।। तक हमले करने लगे। बाजीराव पेशवा ने राणोजी सिन्धिया को मालवा राज्य की कमान सौंप दी। उन्होंने जहांगीर के बाद औरंगजेव उसका उत्तराधिकारी उत्तर भारत में राज्य विस्तार करने का अभियान प्रारंम बना। उसने भी इस दुर्ग को बन्दीगृह के रूप में प्रयोग कर दिया। और ग्वालियर को इसका केन्द्र बनाया। किया। अपने भाई मुराद को उसने इसी दुर्ग में बन्दी राणोजी की मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र जयप्पा और बनाया था। दारा के पुत्र सुलेमान शिकोः को भी इसी माधोजी ने उनका कार्यभार संभाला। इसी बीच स्न दुर्ग में कैद रखा गया । अपने पुत्र सुलतान मुहम्मद को 1761 में पानीपत में युद्ध विभीषिका प्रज्वलित हो उठी भी औरंगजेब ने यहीं कैद रखा । मुराद को फांसी भी और भारत भर में विभिन्न पक्षों के वीरों की तलवारें इसी दुर्ग में दी गई । इन सब कारणों से ग्वालियर का खिंच गई । माधव जी इसमें घायल हो गये । इस बीच किला मृत्यु का द्वार कहा जाने लगा। भरतपूर के जाटों ने लोकेन्द्र सिंह के चाचा के नेतत्व में इस प्रकार दो शताद्वियों के इस काल में ग्वालियर 3 दुर्ग पर अधिकार कर लिया। उधर उत्तर भारत का दुर्ग बन्दी पर के रूप में ही प्रयुक्त होता रहा। नगर और भी तमाम भाग मराठों के हाथ से निकल चुका था। क्षेत्र तथा उसके विकास के ऊपर कोई ध्यान नहीं दिया पर शीघ्र ही पानीपत से लौटकर मराठा बीरों ने गया और बादशाह के द्वारा नियुक्त नुमायन्दे ही राज्य महादजी के नेतृत्व में पुनः उत्तर भारत में विजय अभियान की देखभाल करते रहे। इस काल में जैनियों की दशा प्रारंभ कर दिया और ग्वालियर दुर्ग को अपने अधिकार में ले लिया। इन्होंने इसे फौजी केन्द्र के रूप में के वारे में कुछ भी लेख आदि नहीं मिलते हैं। संभवत: इस काल में शासन की विरोधी नीति के कारण जैनियों प्रयोग करने के उद्देश्य से ग्वालियर दुर्ग के दक्षिण में 1 की क्या, भारतीय मूलों के सभी धर्मों की दशा अच्छी लाख सैनिकों की बड़ी फौजी छावनी का कैम्प लगाया और इसे लश्कर नाम दिया । पात्र बनने के उद्देश्य से या तो स्वयं-मुसलमान हो गये युद्ध के इस वातावरण के मध्य भी धर्मिक गतिया जबरदस्ती मुसलमान धर्म में दीक्षित कर दिये गये। विधियाँ यदाकदा संचालित होती रहीं । सन् 1768 के शासकों द्वारा धार्मिक स्वतंत्रता का खुलकर हनन किया लगभग सेठ मथुरादास लक्ष्मीचन्द्र जी अग्रवाल द्वारा गया। इस प्रकार राष्ट्रीय संरक्षण समाप्त होना और लश्कर क्षेत्र में अत्यन्त भव्य एवं कलात्मक श्री दिगम्बर धर्म पालन पर प्रतिबंध ही इसके मूल कारण रहे। जैन बड़ा मन्दिर पुरानी सहेली का निर्माण कराया गया। तथापि इतने सबके बाबजुद भी जैन धर्मावलंबियों इस काल में ही एक अन्य भव्य एवं कलात्मक मन्दिर की गतिविधियाँ पूर्णत: समाप्त न की जा सकीं। यदा- श्री दिगम्बर जैन मन्दिर चम्पाबाग का निर्माण कार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448