Book Title: Tirthankar Mahavira Smruti Granth
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Jivaji Vishwavidyalaya Gwalior

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Page 393
________________ दिनांक 18 जून को भयंकर युद्ध हुआ। जिसमें अनेकों रहे और अंग्रेज यदा-कदा उन्हें खुश रखने के लिये वीरों सहित वीरांगना लक्ष्मीबाई भी शहीद हुई । अव- सम्मानित करते रहे । सर पाकर अंग्रेज पुनः सत्तारूढ़ हो गये । शान्ति स्थापित होने पर महाराजा जयाजीराव सिन्धिया भी ग्वालियर इनके काल में अशान्तिपूर्ण वातावरण होते हुये भी वापिस लौट आये। ग्वालियर आने के पश्चात् उन्होंने अनेकों मन्दिर आदि के निर्माण कार्य संपन्न हुये । सन् 1864 स्वातंत्र्य प्रेमी निवासियों को दण्ड देने का अभियान चालू के लगभग रामकूई पर नसियां जी के मन्दिर की स्थाकिया। जिसका सर्वप्रथम शिकार ग्वालियर राज्य के पना हुई। लगभग 1 वर्ष बाद ही छत्री बाजार स्थित कोषाध्यक्ष ओसवाल जैनवंशी श्री अमरचन्द्र वांठिया मन्दिर का निर्माण हुआ । ग्वालियर में खच्चाराम मुह ल्ला में स्थित मन्दिर भी इसी काल का बना हआ है। बनाये गये और उन्हें महारानी लक्ष्मीबाई आदि से मिल सन 1878 में मामा के बाजार में भी एक जैन मन्दिर कर शासकीय खजाने की लूट करवाने के आरोप में। का निर्माण कार्य संपन्न कराया गया । मृत्यु दण्ड देने का आदेश दिया । भविष्य में अन्य नगरवासी कभी इस प्रकार का क़त्य न कर सकें अतः उन्हें सन 1885 के लगभग महाराजा को जलोधर रोग भयभीत करने के उद्देश्य से अमरचन्द्र वाठिया को हो गया जिसकी पीडा से परेशान होकर वे दिल बहलाने सराफा बाजार में स्थित एक विशाल नीम के वृक्ष पर के उद्देश्य से यात्रा पर भी गये परन्तु दिनांक 20 जून लटकाकर फांसी दी गई। शहीद का मृत शरीर 1886 के दिन बड़े कष्टपूर्वक उनका प्राणांत हो गया। 3 दिवस तक नीम पर ही टॅगा रखा गया। जिससे अन्य नगरवासी भविष्य में कभी इस प्रकार का कार्य इनकी मृत्यु के समय इनके पुत्र माधवराव केवल करने का साहस न करें। यह वृक्ष अभी भी खुनी नीम दस वर्ष के ही थे। परन्तु परम्परा के अनुसार पिता की के नाम से प्रसिद्ध है। मृत्यु के पश्चत् उनका ही राज्याभिषेक कर दिया गया। अवयस्कता के काल में अंग्रेजों द्वारा नियुक्त एक कौंसिल बाद में महाराजा जयाजीराव सिन्धिया के इन द्वारा सरदारों और अधिकारियों के सहयोग से राज्य भक्तिपूर्ण कृत्यों से प्रसन्न होकर दिनांक 30 नवम्बर कार्य का संचालन किया गया। को आगरा में एक समारोह आयोजित कर गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग ने पुराने ग्वालियर राज्य में तीन लाख सन 1888 में मामा के बाजार में एक दिगम्बर रुपये का राज्य और शामिल कर उन्हें पूनः औपचारिक तथा सन् 1893 में सराफा बाजार में एक श्वेताम्बर जैन रूप से राज्यभार सौंपते हए अंग्रेजों की भक्ति के लिए मन्दिरों का निर्माण करवाया गया। इनमें सराफा बाजार उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की और साथ ही महाराजा के श्वेताम्बर मन्दिर अत्यन्त भव्य एवं कलात्मक है। और बकाया लाखों रुपये की रकम भी छोड़ दी। . दिनांक 15 दिसम्बर 1894 के दिन इस क्षेत्र के उन्हें अनेकों उत्कृष्ट पदवियों से विभूषित कर ब्रिटिश गवर्नर जनरल ने एक समारोह में 30 हजार वर्ग मील सेना का आनरेरी जनरल नियुक्त किया । परन्तु दुर्ग पर में फैले 32 लाख की आबादी और डेढ़ करोड़ की आयअभी भी अंगेजों का ही आधिपत्य रहा । महाराजा वाले तत्कालीन ग्वालियर के शासन का कार्यभार माधवद्वारा अनेकों बार याचना करने पर सन् 1886 में राव सिंधिया को सौंप दिया । पुन: यह दुर्ग सिन्धिया राजवंश को प्रदान कर दिया गया । महाराजा अपने सारे राज्यकाल में अंग्रेजों को अंग्रेजों का संरक्षण होने के कारण ये सारे शासनप्रसन्न करने व स्वामिभक्ति का परिचय देने में ही लगे काल में युद्ध आदि के भय से निश्चिन्त रहे । अत: प्रजा और बकाया लाखा ९१ कर ब्रिटिश जनरल ने एक समारोह माय ३५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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