Book Title: Tirthankar Mahavira Smruti Granth
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Jivaji Vishwavidyalaya Gwalior

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Page 400
________________ दृष्टि से चार खण्डों में विभक्त किया गया है। प्रथम तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन के निर्माण में इन खण्ड में पंडितजी के प्रति भावभीनी श्रद्धांजलियाँ तथा महापुरुषों की भूमिका पर प्रकाश डालनेवाली हिन्दी तथा उनके जीवन, व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर बत्तीस की यह प्रथम पुस्तक है । विभिन्न विषयों पर लेख तथा संस्मरण संग्रहित किए गये है जो पंडितजीके बहुमुखी व्यक्तित्व के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डालते हैं। द्वितीय खण्ड में धर्म और दर्शन से जैन दर्शन की रूपरेखा सम्बन्धित विभिन्न विषयों पर चौदह लेख, ततीय खण्ड में साहित्य एवं संस्कृति से सम्बन्धित उन्नीस लेखों तथा लेखक-एस. गोपालन । भाषान्तर-गुणाकर चतुर्थ खण्ड में इतिहास एवं पुरातत्व से सम्बन्धित विषयों मुले, । प्रकाशक-वाईलो ईस्टर्न लिमिटेड, नई दिल्ली। पर तेरह लेखों का संग्रह है। द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ मल्य-सोलह रुपया। खण्डों में प्रकाशित लेखों में अधिकतर सामग्री शोधपूर्ण है, जिनके द्वारा जैन वाङ्गमय के कई अज्ञात एवं लुप्त पक्षों पूस्तक श्री एस. गोपालन की मल अंग्रेजी पुस्तक को उजागर किया-गया है। कई शोधपत्र अत्यन्त उच्च- Outlines of Jainism का हिन्दी अनुवाद है। यद्यपि कोटि के हैं। सम्पादन व मूद्रण पर पर्याप्त परिश्रम पुस्तक में सक्षिप्त में हो, जन परम्परा के उद्गम से अधुकिया गया है, जिसने ग्रन्थ को और भी सुन्दर बना नातम् विकास का सर्वतोमुखी परिचयात्मक अध्ययन दिया है। प्रस्तुत किया गया है, तथापि पुस्तक में जैन सिद्धान्तों के सभी आवश्यक तत्वों का समावेश है । जैन ज्ञानमीमांसा, मनोविज्ञान, तत्व मीमांसा तथा नीतिशास्त्र के बारे में लेखक ने अत्यन्त कुशलतापूर्वक विषय विवेचन किया है। चौबीस तीर्थकर पुस्तक का भाषान्तर भी उत्तम है । जैन दर्शन के विद्यालेखक -डा. गोकुलचन्द्र जैन । आशीर्वचन- थियों के लिये सरल भाषा तथा संक्षिप्ताकार में उपलब्ध आचार्य श्री तुलसी। प्रकाशक-पराग प्रकाशन, विश्वास यह अत्यन्त उपयोगी पुस्तक है। नगर, शाहदरा, दिल्ली 32, मूल्य-छह रुपया। पाकेट बुक आकार में प्रकाशित प्रस्तुत पुस्तक में जैन सिद्धान्त भास्कर जनसामान्य के अध्ययन की दृष्टि से सरल भाषा तथा आकर्षक शैली मैं चौबीसों जैन तीर्थंकरों का सजीव चरित्र (जुलाई 1975 भाग----28-1 किरण (The Jain चित्रण प्रस्तुत किया गया है । प्रारम्भ में "आओ तीर्थ - Antiquary), जैन पुरातत्व सम्बन्धी षण्मासिक पत्र । कर-बनें" शीर्षक से लेखक ने तीर्थ कर बनने की योग्यता प्रकाशक-श्री देव कुमार जैन ओरिएन्टल रिसर्च इन्सका सशक्त विश्लेषण किया है, तत्पश्चात क्रमशः चौबीसों टीटयट एवं जैन सिद्धान्त टीट्यूट एवं जैन सिद्धान्त भवन, आरा (बिहार) । मूल्यतीर्थकरों का वर्णन है। विवादास्पद तत्वों के सन्दर्भ एक प्रति-दस रुपया, वार्षिक-बीस रुपया। में लेखक ने अनेकान्तिक चिन्तन के आधार पर अनाग्रही दृष्टिकोण को अभिव्यक्त किया है । यद्यपि-कूछेक तीर्थ- प्रस्तुत षण्मासिक पत्रिका जैन पुरातत्व सम्बन्धी करों के बारे में अत्यन्त संक्षिप्त विवरण दिया है, तथापि अद्वितीय शोध पत्रिका है । जूलाई अंक में "प्राकृत जैन वह माननीय है। चौबीसों तीर्थ करों के जीवनचरित्र स्रोतों का भक्ति एवं दर्शनमलक विश्लेषण: गौतम गणधर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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