Book Title: Tirthankar Mahavira Smruti Granth
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Jivaji Vishwavidyalaya Gwalior

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Page 401
________________ कृत ईसा से छः सदी पूर्व का दि. जैन ग्रन्थ, अपभ्रश चन्द्र, अगरचन्द्र नाहटा, भंवरलाल नाहटा तथा ज्योति का अद्यावधि प्रकाशित दुर्लभ ग्रन्थ "तिसट्टमहापुराण- प्रसादजी जैन के सात मौलिक, एवं शोधपूर्ण निबन्ध पुरिसआयारगुणालंकार"; महान आचार्य वप्पभद्रसूरि प्रकाशित किये गए हैं। का गौडेश्वर धर्मपाल, बौद्धाचार्य न कुजर और कवि वाक्पतिराज पर प्रभाव, जैन कर्म सिद्धान्त और भारतीय दर्शन, शीर्षकों से सर्वश्री डा. केदारनाथ पंडित टोडरमल: व्यक्तित्व और कर्तत्व ब्रह्मचारी, एस. सी. दिवाकर, डा. राजाराम जैन, अगरचन्द्र नाहटा' एवं प्रो. उदयचन्द्र जैन के शोधपत्र लेखक-डा. हुकमचन्द्र भारिल्ल, प्रकाशक-4 प्रकाशित किये गए हैं। सभी शोधपत्र मौलिक तथा टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, ए-4 बापूनगर, जयपुर 4 पुरातत्वीय अध्ययन एवं शोध की दृष्टि से उच्चस्तरीय मूल्य-सात रुपया। हैं। पुस्तिका जैन पुरातत्व में शोधकार्य के दुष्कर कार्य की पूर्ति की दिशा में विशेष महत्व की है। इन्दौर विश्वविद्यालय द्वारा पी-एच. डी. के लिए स्वीकृत यह शोध-प्रबन्ध आचार्यकल्प पंडित प्रवर टोडरमल के जीवन, व्यक्तित्व और उनके सामाजिक, धार्मिक व साहत्यिक कार्यों का प्रामाणिक विवेचन कर उनका जनरल आफ पूरनचन्द्र नाहर मूल्यांकन प्रस्तुत करता है। पुस्तक की विषय-सामग्री-सात इन्स्टीट्यूट आफ जैनोलाजी अध्यायों में विभाजित है। प्रथम अध्याय में पूर्व धार्मिक (नवम्बर 75 एवं अप्रैल 76 अक) व सामाजिक विचारधाराएँ और परिस्थितियाँ, द्वितीय अध्याय में आचार्य प्रवर का जीवनवृत, तृतीय अध्याय सम्पादक-के. सी. ललवानी। प्रकाशक-पूरनचन्द्र में आचार्य प्रवर की रचनाएं और उनका वर्गीकरण तथा नाहर इन्स्टीट्यूट आफ जैनोलाजी, कुमारसिंह हाल, 46 रचनाओं का परिचयात्मक अनुशीलन, चतुर्थ अध्याय में इडियन मिरर स्ट्रीट, कलकत्ता 13 । मूल्य-प्रति अंक वर्ण्य-विषय और दार्शनिक विचार तथा विविध विचार, दो रुपया, बार्षिक-पांच रुपया। पंचम अध्याय में गद्य शैली, षष्टम में भाषा तथा स्व. पूरनचन्द्रजी नाहर की स्मृति में स्थापित सप्तम में उपसंहारः उपलब्धियां और मूल्यांकन शीर्षकों इन्स्टीट्यूट आफ जैनोलाजी द्वारा जैन विद्या पर शोध- से पडितजी के व्यक्तित्व और कर्तत्व का शोधपर्ण कार्य को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से प्रकाशित यह विवेचन किया गया है। पंडितजी के सम्बन्ध में नवीन पत्रिका शोध-पत्रिकाओं की शृखला में एक महत्वपूर्ण सन्दों में प्रामाणिक विवरण उपलब्ध करानेवाला यह कड़ी है। पत्रिका का नवम्बर 75 अंक पूरनचन्द्र नाहर शोध प्रबन्ध भाषा एवं शैली की उत्कृष्टता के कारण शताब्दी अंक है जिसमें नाहरजी की सेवाओं के प्रति अति सुन्दर बन पड़ा है। श्रद्धांजलियों एवं संस्मरणों के अतिरिक्त मुनिश्री सुशील कुमार व सर्वश्री ए. एन. उपाध्ये तथा भागचन्द्रजी के मौलिक एवं शोधपूर्ण निबन्ध प्रकाशित किये गए हैं। तीर्थ कर महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ अप्रैल 76 अंक में सर्वश्री के. सी. ललवानी, पूरनपन्द्र नाहर, डी. पी. घोष, पी. वी. पंडित, मुनिश्री रूप- लेखक - डा. हुकमचन्द्र भारिल्ल । प्रकाशक-पं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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