Book Title: Tirthankar Mahavira Smruti Granth
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Jivaji Vishwavidyalaya Gwalior

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Page 404
________________ पूर्ति सम्पन्न होकर मुनिश्री दुलहराजजी ने इसका सर्वप्रथम सम्पादन तथा अनुवाद कर यह अद्यावधि अप्रकाशित महाकाव्य, मूलानुगामी हिन्दी अनुवाद के साथ इस ग्रन्थ के रूप में प्रकाशन किया गया है । प्रस्तुत महाकाव्य में अठारह सर्ग एवं 535 श्लोक हैं । प्रत्येक सर्ग के प्रारम्भ में सम्पादक ने प्रतिपाद्य विषय, श्लोक परिमाण, सलक्षण छन्दनाम, तथा सर्ग संक्षेप देकर अध्येताओं की सुविधा के लिये सर्गानुकूल भाव-भूमिका प्रस्तुत की है। प्रस्तुत महाकाव्य में प्रथम तीर्थ कर आदिनाथ के दो पुत्रों भरत- बाहुबलि के जीवन के एक पक्ष - युद्ध से सम्बन्धित प्रसंग का काव्यात्मक वर्णन है । भरत बाहुबलि का जीवन बड़ा ही लोकप्रिय एवं आह्लादकारी रहा है और इस पर अनेकों कवियों द्वारा स्वतन्त्र रचनाएँ की गई हैं परन्तु पुण्य कुशलमणि जी का यह महाकाव्य इन पुस्तकों की श्रृंखला में अत्यधिक उच्च कोटि का माना जाता है । पुस्तक का अनुवाद भाषा एवं शैली की उत्कृष्टता के कारण मौलिक-सा प्रतीत होता है । ग्रन्थ के पूर्व, ग्रन्थ की विस्तृत प्रस्तावना में ग्रन्थ का साहित्यिक मूल्यांकन किया गया है। आवरण पृष्ठ पर श्रवणवेलगोला की बाहुबली की प्रतिमा के रेखाचित्र ने ग्रन्थ के बाह्य सौन्दर्य को दीप्तिमान कर दिया है। महावीर श्री चित्रशतक सम्पादक एवं लेखक - कमलकुमार जी शास्त्री "कुमुद,” ," कवि श्री फूलचन्द्रजी पुष्पेन्दु | प्रकाशकभोकमसेन रतनलाल जैन, 1286 बकोल पुरा, देहली 110,006 | मूल्य दस रुपया । पुस्तक तीर्थंकर महावीर के सम्बन्ध में अपने प्रकार का अनूठा प्रकाशन है। पुस्तक के प्रारम्भ में Jain Education International भगवान महावीर के प्रति अनेकों राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त कवियों द्वारा अर्पित काव्यमयी श्रद्धांजलि सम्बन्धी कविताओं का संग्रह है । तत्पश्चात् भगवान महावीर के जीवन-दर्शन व संदेश सम्बन्धी दो निबन्ध तथा काव्यमयी जीवन चक्र ( हीयमान से वर्द्धमान) प्रस्तुत किया गया है । अन्त में भगवान महावीर चित्रशतक के अन्तर्गत सौ चित्रों तथा उनके काव्यमयी वर्णन के माध्यम से भगवान महावीर की पूर्व भवों से लेकर परिनिर्वाण तक की गाथा का सर्जीव चित्रण प्रस्तुत किया गया है । प्रस्तुत पुस्तक भगवान महावीर के बारे में सर्वोपयोगी शैली में जन-सामान्य को जानकारी देने की दिशा में उत्तम प्रयास है । ३७० वचन दूतम् रचयिता - पं. मुलचन्द्र शास्त्री । प्रकाशकसाहित्य शोध विभाग, श्री दि. जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी, महावीर भवन, सवाई मानसिंह हाईवे, जयपुर | मूल्य-पांच रुपया । प्रस्तुत काव्य संस्कृत के मन्दाक्रान्ता छन्द में लिखित मेघदूत एंव पाश्र्वायुदय - शैली में रचित दुतकाव्य है । इसमें मेघदूत के पद्यों के चतुर्थ पाद की समस्यापूर्ति के साथ राजुल की अन्तर्वेदना का मार्मिक चित्रण है । शताब्दियों के उपरान्त एतादृश परम्पराशील रचना देखकर ऐसा विश्वास होने लगा कि संस्कृत में सर्जनात्मक साहित्य की गति मन्द भले ही पड़ गई हो किन्तु अभी सर्वथा समाप्त नहीं हुई है। पुस्तक संस्कृत साहित्य की इस शताब्दी की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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