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अंग सुत्ताणि (तीन खण्ड)
और विवागसूयं (विपाक) का संग्रह है। इसमें भी कति
पय उपलब्ध ताडपत्रीय एवं कर्गलीय हस्तप्रतियों के सम्पादक-मुनि श्री नथमल, वाचना प्रमुख
आधार पर पाठ-संशोधनों के साथ अवशिष्ट अंग-ग्रन्थों आचार्य तलसी, प्रकाशक-जैन विश्वभारती, लाडनूं को प्रस्तुत किया गया है। (राजस्थान), मूल्य-प्रथम खण्ड-पिच्यासी रुपयाद्वितीय खण्ड-नब्बे रुपये, ततीय खण्ड-अस्सी रुपया। सम्पूर्ण ग्रन्थ आगम साहित्य के प्रकाशन की दिशा में
एक महत्वपूर्ण देन है । ग्रन्थ का सम्पादन उच्च कोटि का आचार्य श्री तुलसीजी के निर्देशन में मुनिश्री नथमल
है, बन्ध सम्पादक और प्रकाशन संस्था के आगम और द्वारा सम्पादित यह ग्रन्थ आगम साहित्य के प्रकाशन में
साहित्य प्रकाशन के निदेशक श्रीचन्द्र रामपुरिया ने महत्वपूर्ण कड़ी कहा जा सकता है। ग्रन्थ के सम्पादन
ग्रन्थ को सुन्दर बनाने में काफी परिश्रम किया है। ग्रन्थ में मुनिश्री दुलहराजजी ने सहयोगी तथा सुदर्शनजी,
का मुद्रण एवं बाइण्डिंग भी उत्तम कोटि का है। श्री मधुकरजी व हीरालालजी ने पाठ संशोधन के महत्वपूर्ण
जयचन्द्रलालजी सूरजमलजी गोरी परिवार (सरदारदायित्व का निर्वाह किया है।
शहर) तथा श्री रामलाल हंसराज गोलछा, (विराटश्री 2500वां भगवान महावीर निर्वाण महोत्सब ।
नगर, भोपाल) ने ग्रन्थ के प्रकाशन हेतु साधन उपलब्ध वर्ष के अवसर पर जैन विश्व भारती द्वारा प्रथम ग्रन्थमाला के रूप में प्रकाशित इस ग्रन्थ में ग्यारह अंग ग्रन्थों
विषय और भाषा के पूर्व ऐतिहासिक क्रम को के मूल संशोधित पाठों को तीन खण्डों में प्रकाशित किया
ध्यान में रखते हुए अस्पष्ट तथा संदिग्ध पाठों को चूणियों गया है।
एवं वृत्तियों के आलोक में निर्धारित कर उनके पाठ प्रथम खण्ड में प्रथम चार अंगों आयारो (आचार),
संशोधन मावधानी पूर्वक प्रस्तुत किये गए हैं । आगम
मति मनिश्री नथमलजी एवं आगम साहित्य के लिये सूयगडो (सूत्रकृत , ठाडं (स्थान) एवं समवायों (समवाय)
समर्पित व्यक्तित्व श्रीचन्द्र रामपूरिया एवं उस दल के का संग्रह है। इनमें से आचारांग एवं सूत्रकृतांग में
साधू-साध्वियों के अथक परिश्रम से जैन विद्या को प्रयुक्त आदर्शों में चूणि एवं वृत्ति के सन्दर्भ में पाठों को
इस ग्रन्थ में नवीन उपलब्धियाँ हई हैं। इसके लिये उनके तुलनात्मक एवं गम्भीर समीक्षा के पश्चात,
साहित्य जगत आभारी रहेगा। "ठार्ड" में कुछ हस्त प्रतियों के आधार पर तथा 'समवायांग" में तीन प्राचीन आदर्श प्रतियों एवं वत्ति के आधार पर तैयार किया गया है।
श्रमण महावीर द्वितीय खण्ड में पाँचवा अंग "भगवई"(भगवती सूत्र) प्रकाशित किया गया है, जिसे ताड़पत्र एवं कर्ग- लेखक-मुनिश्री नथमल । सम्पादक-मुनिश्री लीय सात हस्तप्रतियों तथा आगमोदय-समिति द्वारा दूलहराज प्रबन्ध सम्पादक - श्रीचन्द्र रामपुरिया । प्रकाशित किया गया है।
प्रकाशक-जैन विश्वभारती लाउनू (राजस्थान)।
मूल्य-सोलह रुपया। . तृतीय खण्ड में छह अंगनायाधम्मकहाओ (ज्ञाताधर्म कथा), उवासगढसाओ (उपासक दशा), अंतगड़द- प्रस्तुत ग्रन्थ श्रमण महावीर के सम्बन्ध में उपलब्ध साओ (अन्तकृतदशा),पण्डावागरणाई (प्रश्न व्याकरण), प्राचीनतम प्रमाणों के आधार पर भगवान महाबीर के
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