Book Title: Tirthankar Mahavira Smruti Granth
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Jivaji Vishwavidyalaya Gwalior

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Page 392
________________ करने के लिये उन्हें बड़ागांव जाना पड़ता था। अतः ही सन 1857 में भारत के राष्ट्रभक्त वीरों द्वारा उन्होंने अपने पुत्र से मुरार में एक मन्दिर स्थापित स्वतन्त्रता संग्राम छेड़ दिया गया। महाराजा अंग्रेजों के करने को कहा । पुत्र ने अपनी मां की सुविधा की दृष्टि परमभक्त थे । अतः इस अवसर को अंग्रेजों को प्रसन्न से मुरार में एक कमरे के अन्दर मूर्ति प्रतिष्ठा कराकर करने के लिये उपयुक्त समय मानकर उन्होंने अपनी मन्दिर की स्थापना की। जो आज अपने बड़े रूप में भक्ति भावना का पूर्ण परिचय देने का संकल्प किया। बना हुआ है। लश्कर में कसेरा ओली में स्थित राजा परिणाम यह हुआ कि 28 मई को स्वतन्त्रता प्रेमी जी का चैत्यालय भी इसी काल का बना हुआ है। सैनिकों ने विद्रोह कर दिया। उधर महाराजा अंग्रेजों की इस प्रकार इस काल में महाराजा दौलतराव सुरक्षा का प्रबंध करने में जी जान लगाकर जुट गये । अंग्रेजों के सहयोग से राज्य कार्य चलाते रहे। सन् परन्तु समूह एक शक्ति होती है। 14 जून 1857 की रात्रि को कन्टिन्जेन्ट फौज ने भी राष्ट्रप्रेमियों के समर्थन 1827 में इनका स्वर्गवास हो गया। इनके पश्चात उनकी प्रिय पत्नी ने एक 11 वर्षीय नाबालिग लड़के में विद्रोह कर दिया। अनेकों अंग्रेज अफसर मौत के घाट उतार दिये गये । महाराजा ने अपनी भक्ति का परिचय को गोद लिया और उसका नाम जनकोजीराव रखा। देते हुये शेष सभी जीवित अंग्रेज पुरुषों को महिलाओं व उनके युवा होने तक महारानी ने ही राज्य संचालन का कार्य किया । युवा होने पर उन्होंने स्वयं शासन का बच्चों सहित आगरा पहुंचा दिया। दिनांक 28 मई सन भार संभाल लिया इनके काल में कोई विशेष घटना 1858 ई. को नाना पेशवा, तात्या टोपे और महारानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में स्वातंत्र्य वीरों की सेना राष्टधटित नहीं हई। दिनांक 7 फरवरी 1843 ई. को द्रोहियों को खुदती हई ग्वालियर की छाती पर चढ़ आई अल्पायु में ही इनका स्वर्गवास हो गया। और 1 जून से भयंकर रूप में युद्ध शुरू कर दिया। नया बाजार लश्कर में स्थित दिगम्बर जैन मन्दिर ग्वालियर के सारे राष्ट्रप्रेमी स्वातन्त्र वीरों ने उनका और ग्वालियर नगर में स्थित गोकुलचन्द्र का मन्दिर साथ दिया जिससे भयभीत होकर जियाजीराव युद्धइन्हीं के काल में निर्मित हुये थे । स्थल से भाग खड़े हये और अंग्रेजों की शरण में आगरा महाराजा जनकोजीराव के कैलाशवासी होने पर आ पहुंचे । महारानी ताराबाई ने उनका पुत्र न होने के कारण एक 8 इधर स्वातंत्र वीरों ने सभी शासकीय केन्द्रों पर वर्षीय बालक को गोद लिया । उनका नाम जीवाजीराव कब्जा कर लिया और ग्वालियर पर अपने झंडे गाड़ सिंधिया रखा गया। महाराजा की नावालिगी में कौन दिये । गोरखी में स्थित शासकीय खजाने को लट लिया प्रवन्ध करे इस विषय को लेकर सरदारों में खूब झगडे गया। इस समय अमरचन्द्र वांठिया नामक एक जैन हये । अंग्रेजों ने मौके का फायदा उठाकर सन् 1845 में धर्मावलंबी महाराजा के खजांची थे । लूट के समय वे एक 6 सदस्यीय कौंसिल आफ रिजेन्सी कायम कर दी। वहीं मौजूद थे। उन्होंने स्वातंत्र्य वीरों का कोई प्रति9 वर्ष तक राज्य का सारा प्रबंध इसी कौंसिल ने किया। कार नहीं किया। उन्होंने खुलकर लूट की और सारा इस कौंसिल के शासनकाल में सन् 1848 में लश्कर में खजाना लूट लिया। वीर पुत्रों का संरक्षण पा ग्वालिदानाओली में जैसवाल पंचायत द्वारा मन्दिर का निर्माण यर की भूमि निहाल हो उठी। कार्य सम्पन्न हुआ। 1854 में महाराजा के वालिग होने पर वे स्वयं परन्तु दूसरी ओर सर ह्य रोज ने वीरों से अनपात अंग्रेजों के मार्गदर्शन में कार्य करने लगे। 3 वर्ष पश्चात् में कई गुनी सेना लाकर उन्हें चारों ओर से घेर लिया। ३५८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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