Book Title: Tirthankar Mahavira Smruti Granth
Author(s): Ravindra Malav
Publisher: Jivaji Vishwavidyalaya Gwalior

View full book text
Previous | Next

Page 372
________________ राज्य का क्षेत्र बढ़ाने, अपनी विचारधारा का प्रचार करने आदि में व्यतीत करते थे । तथापि सभी के विषय में ऐसा नहीं कहा जा सकता । अनेकों राजाओं ने इन सबके अतिरिक्त कला एवं साहित्य के विकास तथा स्थापत्य पर भी ध्यान दिया। अधिकतर निर्माण-कार्य मंदिरों और महलों के ही रूप में कराये गये। आगे चलकर शिलालेख खुदवाने की परम्परा भी पाई जाती है। लेकिन जहाँ तक लेखन का प्रश्न है प्राचीन समय में धार्मिक ग्रन्थों के अतिरिक्त बहुत कम ही लिखा गया । यदि थोड़ा-बहुत लिखा भी गया है तो वह राजाओं की प्रशंसा आदि के सम्बन्ध में है। हाँ विदेशों से आये विभिन्न दूतों द्वारा लिखा गया वर्णन अवश्य अनेकों ऐतिहासिक तथ्यों को प्रकाशित करता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्राचीन समय में इतिहास लिखने की परम्परा नहीं थी । अन्य जो कुछ लिखा भी गया, वह सुरक्षित नहीं है। हाँ शिलालेख और धर्मग्रन्थ अवश्य थोड़ा-बहुत प्रकाश डालते हैं। अनेकों प्राचीन ऐतिहासिक नगरों पद्मावती तथा सिहोनियां आदि से मिलकर बना यह भाग भारत के इतिहास में अपना अत्याधिक महत्व रखता है, परन्तु इसके सम्बन्ध में भी यही दशा है । यहाँ के बहुत से ऐतिहासिक तथ्य और ग्रन्थ नष्ट हो गए हैं और जो हैं भी उन पर पर्याप्त शोध न होने के कारण कुछ सीमित जानकारी के सहारे तथा अन्य स्थानों पर कल्पना शक्ति के ही सहारे आगे बढ़ना पड़ता है । फिर भी प्राचीन ग्रन्थों आदि से इस क्षेत्र के ऐतिहासिक दृष्टि से धनवान होने के उदाहरण मिलते हैं। अनेकों प्राचीन ग्रन्थों में पद्मावती, सिहोनिया, गोपाद्री, गोपागिरी और गोपाचल आदि शब्दों का उल्लेख मिलता है । प्रमाण सूर्यकुण्ड पर स्थित हूण और मिहिरकुल के एक शिलालेख द्वारा प्राप्त होता है। जिसका काल लग भग 515 ई. माना जात है। इस काल के बारे में विशेष विवरण नहीं मिलता। इस कारण जैनों की स्थिति के बारे में कुछ निश्चित मत व्यक्त नहीं किये जा सकते। पर इतना निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि इस नगर निर्माण के काल से ही पान-पान: जैन धर्मावलम्बी इस नगर में आकर बसने लगे थे। इस समय ग्वालियर पर तोरमन और उसके पुत्र मिहिरकुल का आधिपत्य था । इनका शासन काल बड़ा दुखदायी रहा। सन् 533 ई. में यशोवर्मन द्वारा पराजित किये जाने पर वह काश्मीर भाग गया पर स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ । यशोवर्मन और उसके पुत्र नागवर्मन ने सन् 550 ई. तक यहां राज्य किया। इस प्रकार इन 80 वर्षों में राज्य की दशा बड़ी ही अस्थिर रही। इसके पश्चात् हर्ष के सम्राट होने पर उसने ग्वालियर पर भी कब्जा कर उसे अपने राज्य में मिला लिया। इसके राज्य में शान्ति रही, यद्यपि वह स्वयं बौद्ध मतावलम्बी था परन्तु वह धर्मान्ध नहीं था । अतः इसने सभी वर्गों को समान रूप से प्रगति के अवसर प्रदान किये । इसके कारण उसके काल में यहाँ जैन पर्याप्त मात्रा में थे और इस क्षेत्र में तभी से क्रियाशील हो उठे थे। वे धर्म प्रचार और साधना के अतिरिक्त अब संगठन, तथा मंदिरों के निर्माण पर भी ध्यान देने लगे थे । प्रसिद्ध चीनी यात्री हुएनसांग इन्हीं के राज्यकाल में भारत आया था। उसने अपनी पुस्तक में एक स्थान पर जैन साधुओं की चर्चा करते हुए लिखा है-“निर्व्रन्थ साधू अपने शरीर को नग्न रखते हैं और वैसे इस दुर्ग के सम्बन्ध में सर्वप्रथम ऐतिहासिक बालों को नोच डालते हैं । उनकी प्रधानता सारे देश में Jain Education International 1. आ. स. ई. रिपोर्ट, भाग 2, पृष्ठ 339, तथा भाग 20, पृष्ठ 107 1 ३३८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448