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की। इसमें जैनियों के 23 वें तीर्थ कर नेमिनाथ का इन पंक्तियों के लेखक ने सन् 1669 में प्रकाशित जीवन-परिचय अंकित है।30
ग्वालियर जैन डायरेक्टरी में अपने एक लेख "अतीत की
ओर एक दृष्टि' में इतिहासकारों का ध्यान इस ओर उधर सिकंदर लोदी की मृत्यु के पश्चात् इब्राहीम
आकर्षित किया था, और बड़ी प्रसन्नता का विषय है लोदी ने शासन सँभालते ही अपने पूर्वजों की महत्त्वा
कि सन् 1976 में प्रकाशित श्री हरिहर निवास जी कांक्षा को साकार करने के उद्देश्य से ग्वालियर दुर्ग पर
द्विवेदी की पुस्तक "ग्वालियर के तौमर" में इस सम्बन्ध पुनः आक्रमण कर दिया। इसी बीच सन् 1519 ई. में।
में उपलब्ध ऐतिहासिक प्रमाण एवं तथ्य उजागर हुए महाराजा मानसिंह की मृत्यु हो गई और तलवारों की
- हैं। इस सम्बन्ध में खड्गराय की पुस्तक “गोपाचल
है। छाया में उनके पुत्र विक्रमादित्य गद्दी पर बैठे। उनके
आख्यान" में वणित सूत्र पर्याप्त प्रकाश डालता है :नेतृत्व में राजपूत जी तोड़कर लड़े पर अपने से अनुपात में कई गुनी लोदियों की सेना पर विजय न पा सके और जो विधिना विधि आपन कर, सोई होई न टारी टरै । लोदियों के सेनापति हमायूसे सन्धि करना पड़ी। वे देखो विधना को संजोग, जनमें कहूँ कहूँ रहैं लोग । अब शमसाबाद के एक जागीरदार मात्र रह गए और पूरव गाजीपुर को ठाऊ, कुमरगढ़ा ताको रहि नाऊ । उन्हें लोदियों की ओर से पानीपत में बाबर के विरुद्ध मोहम्मद गौस जहां ते आई,रहे ग्वालियर में सुख पाइ॥ युद्ध करने भेजा गया। इस बीच तँवर वंश के एक दूसरे तेजस्वी राजकुमार रामसिंह तोमर ने ग्वालियर
विधिना विधि ऐसे छई, सोई भई जु आई। दुर्ग पर आक्रमण कर किले के अफगान अधिकारी चन्द्रप्रभू के थोहरें, रहे गौस सुख पाई ॥" तातार खां को परास्त कर दुर्ग पर अपने झण्डे गाड दिये।
इस बीच तातार खां दुर्ग में ही छिपा रहा और
जैसे ही बाबर दिल्ली का मम्राट बना, तातार खां ने ___ लगभग इसी काल में सन् 1523 ई. के आसपास उसे गुप्त संदेश भेजकर उससे सहायता प्राप्त की और कभी शेख मोहम्मद गौस नामक फक्कड़ साधू गाजीपुर मोहम्मद गौस साहब की कृपा से ख्वाजा रहीम और (मूलनाम कुमारगढ़) से ग्वालियर आ बसे । वे आकर शेख गोरन के नेतृत्व में विशाल सेना से दुर्ग पर आक्रचन्द्रप्रभू के मन्दिर में ठहरे । यह चन्द्रप्रभू का मन्दिर मण कर, उसे अपने आधिपत्य में ले लिया और महाराजा वही विशाल जैन मन्दिर था जिसे वीरमदेव तोमर के रामसिंह तोमर मेवाड़ की ओर भाग गये। इस प्रकार मंत्री कुशराज ने बनवाया था। यह मन्दिर आजम सन् 1559 में दुर्ग पुनः मुगलों के हाथ में चला गया । हुमायू के आक्रमण के समय (सन् 1518-23) क्षति- उधर विक्रमादित्य पानीपत युद्ध में वीरगति पा गये । ग्रस्त कर दिया गया था। शेख गौस ने इसी में अपनी इसी के साथ ही तोमर वंश का सूर्य सदा के लिये अस्त खानकाह बनाई और आज वहीं उसका मजार बना है। हो गया । इसके साथ-साथ ही धार्मिक, साहित्यिक एवं
39. यह ग्रन्थ अभी आमेर भण्डार में सुरक्षित है।
संवत पन्द्रह से छे गमें, गुनहत्तरि ताऊपर भने
भादों वदि पंचमीवार, सोम नषित रेवती सार ।। 40. ग्वालियर के तोमर-हरिहरनिवास द्विवेदी पृ० 63 । 41. पूर्वोक्त, पृ० 203-4।
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