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जैन- रामकथा में विमल सूरि की परम्परा को अधिक प्रश्रय मिला है। यह श्वेताम्बर तथा दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों में प्रचलित है, परन्तु गुणभद्र की परि पाटी सिर्फ दिगम्बर सम्प्रदाय में ही मिलती है ।
काव्य के अतिरिक्त सीता को लेकर नाटक - साहित्य तथा कथा साहित्य में भी लिखा गया।
जैन कवि हस्तिमल्ल ने सन् 1290 के आसपास संस्कृत में 'मैथिली कल्याण' लिखा जिसका विवेच्य विषय श्रृंगार है । इसके प्रथम चार अंकों में राम और सीता के पूर्वानुराग का चित्रण मिलता है । वे मिलन के पूर्व कामदेव मंदिर तथा माधवी वन में मिलते हैं। तृतीय तथा चतुर्थ अंक में अभिसारिका सीता का वर्णन मिलता है । पंचम तथा अंतिम अंक में राम-सीता के विवाह का वर्णन है।
संपदास के 'वसुदेवहिण्डि' में जैन महाराष्ट्रीय गद्य जो रामकथा मिलती है उसमें सर्वप्रथम सीता का जन्मस्थल लंका माना गया है । वह मंदोदरी तथा रावण की पुत्री है परन्तु परित्यक्त होकर राजर्षि जनक की दत्तक पुत्री बन जाती है। सीता स्वयंवर में सीता अनेक राजाओं में से राम का चयन एवं वरण करती है। संचदास ने गुणभद्र को भी प्रभावित किया था क्योंकि 'उत्तर पुराण' में रावण की वंशावली एवं सीता की जन्म-गाथा पर्याप्त रूप में 'वसुदेवहिण्डि' से सादृश्य रखती है ।
कालक्रमानुसार प्राचीन जैन राम साहित्य के प्रमुख स्तम्भ निम्नलिखित महाकवि थे
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रविषेण - 'पद्मचरित' ( 660 ई.) प्राचीनतम जैन संस्कृत ग्रन्थ ( संस्कृत )
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(ग) स्वयंभू - 'पउमचरिउ' या 'रामायण पुराण' ( अष्टम शताब्दी ई.) (अपभ्रंश)
(घ) गुणभद्र - 'उत्तर पुराण' ( नवम शताब्दी ई.) (संस्कृत)
उपरिलिखित ग्रन्थों में सीता के चरित्र के विविध पक्षों का सम्पक उद्घाटन मिलता है।
'उत्तर पुराण' में भी राम परीक्षा के बिना सीता को स्वीकार करते हैं । सीता अनेक रानियों के साथ ( क ) विमल सूरि पउमचरियं' (तृतीय- चतुर्थ दीक्षा लेती है। अंत में सीता को स्वर्ग मिलता है।
शताब्दी ई.) ( प्राकृत )
विमल सूरि और गुणभद्र की सोता
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विमल सूरि ने सीताहरण का कारण इस प्रकार विवेचित किया है शम्बूक ने सूर्यहास संग की प्राप्ति के हेतु द्वादश वर्ष की साधना की थी। संग के प्रकट होने पर लक्ष्मण उसे उठाकर शम्बूक का मस्तकच्छेदन कर देते हैं | चन्द्रनखा पुत्र वियोग में विलाप करती है । वह राम-लक्ष्मण की पत्नी बनना प्रस्तावित करती है लक्ष्मण खरदूषण की सेना को रोक देते हैं। रावण सीता पर मुग्ध हो जाता है। वह अवलोकनी विद्या से जान लेता है कि लक्ष्मण ने राम को बुलाने हेतु सिंहनाद का संकेत निश्चित किया है। इसलिए वह युक्ति पूर्वक सिंहनाद करके सीना से लक्ष्मण को पृथक् कर सीताहरण करने में सफल हो जाता है ।
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'पउम चरियं के वित्तरवें पर्व में लंका में श्री राम प्रविष्ट होकर सबसे पहले सीता के पास जाते हैं। दोनों का मिलन देखकर देवगण फूल बरसाते हैं और सीता में निष्कलंक तथा पुनीत सात्विक चरित्र का साक्ष्य देते हैं । इस ग्रन्थ में श्रीराम की किसी शंका या सीता की अग्नि परीक्षा का कोई उल्लेख नहीं है ।
स्वयंभू को सोता
स्वयंभू के 'पउमचरिउ' में प्रारम्भ में मूक सीता के दर्शन होते हैं। सागर वृद्धि भट्टारक तथा ज्योतिषी
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