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का यह तर्क कि माँसाहार माँस तथा शक्ति की वृद्धि होती है, भी खण्डित हुआ । चिकित्सा विज्ञान के अनुसार माँसाहार माँस तथा चर्बी बढ़ाकर मोटापे में वृद्धि अवश्य करता है, परन्तु शक्ति या स्फूर्ति में नहीं । माँसाहार से स्फूर्ति या ओज प्रकट नहीं होता, यही कारण है कि घायल, बीमार, अशक्त, गर्भिणी अथवा प्रसूता को माँसाहार निषिद्ध रहता है और उसे दूध, फलों का रस तथा हल्का शाकाहारी भोजन दिया जाता है ।
चिकित्सा शास्त्रीय अनुसंधानों में प्रत्येक आहार की सूक्ष्मतम बारीकियों की जाँच कर जो तथ्य प्रकाश में आए हैं उनसे यह स्पष्ट है कि विभिन्न वस्तुऐं मानव शरीर के लिये अत्यधिक मानवीय आहार की चर्चा करते समय विभिन्न हारी वस्तुओं के इस पक्ष पर भी विचार आवश्यक है ।
अण्डे
माँसाहारी घातक हैं । माँसा - करना
आजकल कुछ लोग अण्डों को निर्जीव बताकर उसे शाकाहार के अन्तर्गत बताकर शाकाहारियों को उनके उपयोग का तर्क देने लगे हैं, या यों कहें कि कुछ शाकाहारी अण्डों के उपयोग को उपरोक्त तर्क से सिद्ध कर दूसरों को भी अण्डे खाने की सलाह देने लगे हैं और इस प्रकार इधर कुछ वर्षों में अण्डों का प्रयोग बढ़ा है, परन्तु वास्तविक रूप से यह तर्क निरर्थक है । माँस और हड्डी न होने के आधार पर अण्डे के तरल को शाकाहार कहना मूर्खता ही है । यह कहनेवाले यह जानकर भी कि - प्रत्येक जीव की उत्पत्ति तरल पदार्थ से ही होती है, इस प्रकार का तर्क देते हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है । विगत अनुसंधानों ने यह सिद्ध किया है कि अण्डे की जरदी अण्डे का बड़ा खतरनाक भाग है। इसमें कोलेस्ट्रोल नामक भयानक विष एक चिकना एलकोहल होता है, जो जिगर में पहुंचकर जमा होता है और हृदय से रक्त ले जानेवाली नाड़ियों में रुकावट पैदा
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करता है, इसके कारण दिल की बीमारी हाई ब्लड प्रेशर, गुर्दे की बीमारी, पित्त की थैली बीमारी में पथरी और जोड़ों में दर्द हो जाता 1
कृषि विभाग, फ्लोरिडा (अमेरिका) ने अपने हैल्थ बुलैटिन (अक्टूबर 1967 ) में प्रकाशित शोध प्रतिवेदन ( रिसर्च रिपोर्ट) में कहा है कि 18 माह के परीक्षण के बाद 30 प्रतिशत अण्डों में डी. डी. टी. नामक विष पाया गया ।" डा. जे. एम. विलकिंस ने लिखा है - " अण्डे की सफेदजरदी मुख्यतया अलवुमिन ही है, जो कि प्रोटीन की एक किस्म ही है। शरीर अलबुमिन को नष्ट तत्व के रूप में बाहर निकालता है। अण्डे का पीला भाग कोलेस्टरोल नामक पदार्थ अपने अन्दर रखता है जो कि एक प्रकार की चिपचिपी शराब है जो यकृत और खून की रंगों में जमा हो जाता है और खून की धमनियों (रगों) में जमा हो जाता है तथा खून की धमनियों (रगों) में जख्म और कड़ापन पैदा कर देता है ।" डा. इ. व. मैककोलम ने जब बन्दरों को अण्डों पर ही रखा तो उनमें सड़ानेवाले कीटाणु अधिक होने लगे और वे सुस्त हो गए, उनके पेशाब की मात्रा कम और रंग गहरा हो गया । जब
उन्हें दूध व अंगूर की शर्करा दी गई तो मानसिक व शारीरिक दोनों परिवर्तन उनमें पुनः लौट आए और बे ठीक हो गए। उन्होंने अपने अनुसंधान के आधार पर यह परिणाम निकाला कि अण्डों में चुने की कमी होती हैं। और उनमें शर्करा भी नहीं होती है । अतः अण्डों में आंत के अन्दर सड़ाने की रुझान होती है बनिस्बत कि हाजमा दुरुस्त करने की। वे विषाक्त तत्वों को शरीर में पैदा कर देते हैं और सुस्ती लाते हैं ।
इंगलैण्ड के डा. राबर्ट ग्राम का लिखना है किमुर्गी के बच्चे में बहुत-सी बीमारियाँ होती हैं उन बीमारियों को विशेषतया टी. बी., पेचिश आदि के कीटाणुओं को अपने साथ लाते हैं और इनको खानेवालों में पैदा कर देते हैं ।" डा. इ. वी. मैक्कलिम ने
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