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राजस्थान के कवि
परमानन्द जैन शास्त्री
राजस्थान भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण अंग है । यहाँ की भूमि वीर प्रसव रही है। यहाँ के वीरों की वीरता, साहस, शौर्य की गरिमा से राजस्था गौरवान्वित है । उसी तरह वह साहित्य और संस्कृति के लिए भी गौरव का स्थान रहा है । यहाँ के साहित्य 'मनीषियों ने वीर योद्धाओं की तरह संस्कृति के संर क्षण और साहित्य निर्माण द्वारा देशभक्ति, नैसिकता और सांस्कृतिक जागरूकता का परिचय दिया है । इस दृष्टि से राजस्थान की महत्ता लोक गौरव का प्रतीक है । राजस्थान के विपुल शास्त्र भंडारों में विविध भाषाओं में कवियों की रचनाएँ उपलब्ध होती हैं । वहाँ अनेक जैनाचार्यों, विद्वानों, भट्टारकों और कवियों का यत्र-तत्र विहार रहा है, जिससे देश में जागृति और धार्मिक मर्यादाओं का संरक्षण हुआ है । उन्होंने अनेक
ठकुरसी
संकटों और भयावह समयों के झंझावातों से भारतीय साहित्य को संरक्षण प्रदान किया है । इस कारण वे अभिनंदनीय हैं । कवि ठकुरसी राजस्थान की इस महान परम्परा के एक प्रमुख कवि थे, भारतीय साहित्य को उनकी देन अविस्मरणीय है ।
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afa ठकुरसी कविवर घेल्ह के पुत्र थे । इनकी माता बड़ी धर्मिष्ठा थी। गोत्र पहाड्या, जाति खंडेलवाल और धर्म दिगम्बर जैन था ।" यह सोलहवीं शताब्दी के अच्छे कवि कहे जाते थे । कविता करना एक प्रकार से आप की पैतृक सम्पत्ति थी; क्योंकि आपके पिता भी अच्छी कविता करते थे । परन्तु अद्यावधि उनकी कोई रचना अवलोकन में नहीं आई । संभव है अन्वेषण करने पर प्राप्त हो जाय ।
1. पपड पहाsिहं वंस शिरोमणि, घेल्हा गरू तसु तियवर धरमिणी । ताह तणइ कवि ठाकुरि सुन्दरि, यह कहि किय संभव जिणमंदिरि ॥
मेघमालावय प्रशस्ति
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