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भाषा के प्रथों पर व्याख्यान करते थे एवं उन्हें कन्नड़ प्राणदण्ड ही नहीं दिया बल्कि गंदगी में गड़वा दिप लिपि में लिख भी लेते थे। ब्र. रायमल ने लिखा है- था। यह भी कहा जाता है कि उन्हें हाथी के पैर के
र नीचे कुचलवा कर मारा गया था। "दक्षिण देश सं पांच सात और ग्रन्थ ताड़पत्रांविषे । कर्णाटी लिपि में लिख्या इहाँ पधारे हैं, ताक टोडरमलजी पंडित टोडरमलजी आध्यात्मिक साधक थे । उन्होंने बाँचे है । वाका यथार्थ व्याख्यान कर है, वा कर्णाटी जैन दर्शन और सिद्धान्तों का गहन अध्ययन ही नहीं लिपि में लिखते हैं।
किया अपितु उसे तत्कालीन जनभाषा में लिखा भी है।
उसमें उनका मुख्य उद्देश्य अपने दार्शनिक चिन्तन को . परम्परागत मान्यतानुसार उनकी आयु कुल 27
जन साधारण तक पहुंचाना था। पंडितजी ने प्राचीन वर्ष कही जाती रही, परन्तु उनकी साहित्यिक साधना,
' जैन ग्रथों की विस्तृत, गहन परन्तु सुबोध भाषा-टीकाएँ ज्ञान व प्राप्त उल्लेखों को देखते हुए मेरा यह निश्चित
लिखीं। इन भाषा-टीकाओं में कई विषयों पर बहुत मत है कि वे 47 वर्ष तक अवश्य जीवित रहे । इस
ही मौलिक विचार मिलते जो उनके स्वतंत्र चिन्तन के सम्बन्ध में साधर्मी भाई ब्र. रायमल द्वारा लिखित चार्चा
परिणाम थे। बाद में इन्हीं विचारों के आधार पर संग्रह ग्रन्थ की अलीगंज (एटा उ. प्र.) में प्राप्त हस्त
उन्होंने कतिपय मौलिक ग्रन्थों की रचना भी की। लिखित प्रति के पृष्ठ 173 का निम्नलिखित उल्लेख
उनमें से सात तो टीकाग्रन्थ हैं और पांच मौलिक विशेष दृष्टव्य है --
रचनाएँ । उनकी रचनाओं को दो भागों में बाँटा जा ____"बहरि बारा हजार त्रिलोकसारजी की टीका का।
सकता है :बारा हजार मोक्षमार्ग प्रकाशक ग्रन्थ उनके शास्त्रों के
(1) मौलिक रचनाएँ (2) व्याख्यात्मक रचनाएं। अनुस्वरि और आत्मानुशासनजी की टीका हजार तीन
मौलिक रचनाएँ गद्य और पद्य दोनों रूपों में हैं। यां तीनां ग्रन्थों की टीका भी टोडरमलजी सैंतालीस. गद्य रचनाएँ चार शैलियों में मिलती हैं :बस की आयु पूर्ण करि परलोक विषं गमन की।" .
(क) वर्णनात्मक शैली, (ख) पत्रात्मक शैली उनकी मृत्यु तिथि विक्रम संवत् 1823-24 के
(ग) यन्त्र रचनात्मक (चार्ट) शैली, (घ) विवेचनात्मक लगभग निश्चित है, अत: उनका जन्म विक्रम सवत् शैली। 1776-77 में होना चाहिए।
___ वर्णनात्मक शैली में समीसरण आदि का सरल - पंडित वखतराम शाह के अनुसार कुछ मतांध भाषा में सीधा वर्णन है । पंडितजी के पास जिज्ञासु लोगों द्वारा लगाये गए शिवपिण्डी के उखाड़ने के आरोप लोग दूर-दूर से अपनी शंकाएँ भेजते थे, उसके समाधान के सदर्भ में राजा द्वारा सभी श्रावकों को कैद कर में वह जो कुछ लिखते थे, वह लेखन पत्रात्मक शैली के लिया गया था और तेरापंथियों के गुरु महान धर्मात्मा, अन्तर्गत आता है। इसमें तर्क और अनुभूति का सुन्दर महापुरुष पडित टोडरमलजी को मृत्यु दण्ड दिया गया समन्वय है । इन पत्रों में एक पत्र बहुत महत्वपूर्ण है। था । दुष्टों के मड़काने में आकर राजा ने उन्हें मात्र सोलह पृष्ठीय यह पत्र ‘रहस्यपूर्ण चिट्ठी' के नाम से
4. बुद्धि विलास : बखतराम साह, छन्दं 1303, 13041 5. (क) वीरवाणी : टोडरमल अंक पृ० 285, 286 । (ख) हिन्दी साहित्य. द्वितीय खण्ड, १० 500 । ।
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