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अपनाकर प्रस्तुत किये गये हैं। वलोदी ने श्रीधर टीकाकार भास्कर प्रथम की टीका में पूर्ववर्ती प्राकृत तथा महावीराचार्य पर विशेष शोध लेख लिखे हैं। ग्रथों की आर्याओं और गाथाओं को खोजा है । अग्रवाल सिकदार के लेखों में जहाँ दर्शन और विज्ञान को यथा- का शोध प्रबन्ध विस्तृत रूप में जैन गणित और ज्योतिष योग्य मर्यादाओं तक विस्तृत कर नवीनता प्रखर उठी की जानकारी देता है। इस प्रकार अब तक जो कार्य है, वहाँ महेन्द्र कुमार एवं जैन के लेखों में इतिहास, हो चूका है वह नई शोध दिशाओं की ओर इंगित गणित एवं विज्ञान के विभिन्न पहलुओं को संयुक्त क्षेत्रों करता है तथा विभिन्न विद्या के केन्द्रों में जैन गणितकी खोज प्रस्तुत की गयी है। दत्त और सिंह ने विज्ञान में शोध हेतु यथोचित प्रबन्ध कराने की ओर बुनियादी कार्य किया है गणित इतिहास का, तथा गुप्ता प्रेरणा देता है। ध्यान रहे कि यह सब शोध मुख्यत: ने गणित इतिहास की अज्ञात गहराइयों में पहंच की है। ऐसे स्थानों में हआ है जहाँ जैन नथ केन्द्र नहीं हैं अत: ये लिश्क एवं शर्मा ने जैन ज्योतिष के गणितानुयोग पर अनेक ग्रंथों के अभाव में हुए हैं। गोम्मटसार दि ग्रयों कार्य किया है तथा सरस्वती ने प्राकृत ग्रंथों के गणित की वृहद् टीकाओं की सामग्री में पंडित टोडरमल द्वारा पर अभिव्यंजना की है। शुक्ला ने आर्यभट्ट प्रथम के बड़ा अंशदान है और उक्त प्रायः 3000 पृष्ठों की
(घ) Shastri, N. C., Bhartiya Jyotisa ka Posaka Jaina Jyotisa. Varni Abhinan
dana Grantha, Saugor, 1962, pp. (च) Sikdara, J.C., Jaina Atomic Theory, I. J. H. S., 5.2 (1970), pp. 197-218. (0) Shukla, K. S. Hindu Mathematics in the seventh century as found in Bhaskara
I's commentary on Aryabhatiya (iv), Ganita, vo'. 23, Dec, 1972, no. 2, ____pp. 41-50. (a) Gupta. R. C., Circumference of the Jambudvipa in Jaina Cosmography, vol. 10,
no. 1. 1975, 38-46. (1) Volodarsky, A. I., Articles on Sridhara and Mahavira, Fiziko matematicheskie
nauki V stranakh vostoka 1 (1966) and 2 (1969). Ci. also a special chapter on India, History of Mathematics from the earliest Times to the Beginning of
the 19th Century, vol. I, edited by A. P. Yushkevich (Moscow 1970-1972). (T) Lishk S. S., and Sharma S. D., The Evolution of Measures in Jain Astronomy,
Tirthankar, vol 1, nos. 7-12, Jul.-Dec. 1975. pp. 83-92. (8) Jain, L. C., Aryabhata the Astronomer and Yativrsabha, the Cosmographer,
ibid, pp. 102-106. (ड) प्रमुख शोध प्रबन्धों में मुकुट बिहारी अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत, "गणित एवं ज्योतिष के विकास में
जैनाचार्यों का योगदान" आगरा विश्वविद्यालय, 1972 है, तथा लिश्क, सज्जनसिंह द्वारा जैन ज्योतिष-बेदांगोत्तर एवं हेलेनयुगपूर्व, नामक शोध प्रबन्ध पंजाब विश्वविद्यालय में अक्टूबर '76 में प्रस्तुत होने जा रहा है। महावीरराज गेलड़ा द्वारा भी रसायन विज्ञान में शोध अग्रसर है।
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