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से भी पतला माना है और कहीं स्टील से भी अधिक की आयु 4 अरब 60 करोड़ वर्ष निश्चित होती है। मजबूत । ऐसे परस्पर विरोधी गुण वैज्ञानिकों का ईथर सृष्टि की आयु से अभिप्राय यह है कि आज जिस रूप में पाये जाते हैं और चूंकि प्रयोगों के द्वारा वे उसके में हम सृष्टि को देख रहे हैं वह रूप लगभग साढ़े चार अस्तित्व को सिद्ध नहीं कर सके हैं इसलिये आवश्यकता- अरब वर्ष पुराना है । नुसार वे कभी उसके अस्तित्व को स्वीकार कर लेते हैं और कभी इन्कार । वास्तविकता यही है जो जैनागम
सृष्टि की उत्पत्ति किस प्रकार हुई ? विज्ञान के में बतलाई गई है कि ईथर एक अरूपी द्रव्य है जो क्षेत्र में इस सम्बन्ध में मुख्य दो सिद्धान्त हैं-(1) ब्रह्माण्ड के प्रत्येक कण में समाया हआ है और जिसमें महान आकस्मिक विस्फोट का सिद्धान्त, और (2) सतत से होकर जीव और पुदगल का गमन होता है। यह उत्पत्ति का सिद्धान्त । ईथर द्रव्य प्रेरणात्मक नहीं है, यानी किसी जीव या
महान आकस्मिक विस्फोट का सिद्धान्त जिसे सन पुद्गल को चलने की प्रेरणा नहीं करता वरन् स्वयं
1922 में रूसी वैज्ञानिक डा० फैडमैन ने जन्म दिया, चलनेवाले जीव या पुदगल की गति में सहायक
हिन्दुओं की कल्पना से मेल खाता है । जिसके अनुसार जाता है, जैसे ऐंजिन के चलने में रेल की पटरी (लाइनें)
ब्रह्माण्ड का जन्म हिरण्य गर्भ (सोने का अण्डा) से सहायक हैं । इस द्रव्य के बिना किसी द्रव्य की गति
हुआ। सोना धातुओं में सब से भारी है । दूसरे शब्दों सम्भव नहीं है।
में यह कहा जा सकता है कि जिस पदार्थ से विश्व की अब हम पाठकों को विश्व की उत्पत्ति के सम्बन्ध रचना हुई है वह बहत भारी था। उसका घनत्व सब में कुछ बातें बताते हैं-हिन्दओं के संकल्प मन्त्र के से अधिक था । बढ़ते-बढ़ते यही अण्डा विश्वरूप हो अनुसार इस पृथ्वी का जन्म आज से 1 अरब 97 करोड गया । 29 लाख 49 हजार 76 वर्ष पूर्व हुआ । संकल्प मंत्र
अमेरिका के प्रोफेसर चन्द्रशेखर ने गणित के आधार इस प्रकार है-ओऽम् तत्सत् ब्रह्मणे द्विताये पराद्ध,
पर बतलाया है कि विश्व रचना के प्रारम्भ में पदार्थ श्री श्वेत वाराह कल्पे, वैवस्वत मन्वन्तरे अष्टा
का घनत्व लगभग 160 टन प्रति घन इंच था। जबकि विंशतितमे युगे, कलियुगे, कलि प्रथम चरणे इत्यादि ।'
1 घन इंच सोने का तोल केवल 5 छटांक होता है। (संकल्प मन्त्र में से सृष्टि सम्वत् की यह संख्या दूसरे शब्दों में वह पदार्थ अत्यन्त भारी था। किस प्रकार निकलती है, लेख का कलेवर बढ़ जाने के भय से हम यहाँ बतलाना उचित नहीं समझते ।)
आजकल के वैज्ञानिक इस प्रश्न पर दो समुदायों
में बँटे हुये हैं-एक वह जिनका मत है कि यह ब्रह्माण्ड कुछ समय पूर्व साइन्स की भी यही धारणा थी अनादिकाल से अपरिवर्तित रूप में चला आ रहा है और कि पृथ्वी का जन्म लगभग 2 अरब वर्ष पूर्व हुआ, किन्तु दूसरा वह जो यह विश्वास करते हैं कि आज से अब यह मान्यता बदल गई है। एक मान्यता ऐसी है अनुमानतः 10 या 20 अरब वर्ष पूर्व एक महान कि पृथ्वी के प्रशान्त महासागर से चन्द्रमा का जन्म आकस्मिक विस्फोट के द्वारा इस विश्व का जन्म हुआ। हुआ। अमृत-मंथन की कथा में इसी बात का संकेत हाइड्रोजन गैस का एक बहुत बड़ा धधकता हुआ बबूला मिलता है। जब चन्द्रमा पृथ्वी से पृथक् हुआ तो उसकी अकस्मात फट गया और उसका सारा पदार्थ चारों गति भिन्न थी और यह गति अब घट गई है और जिस दिशाओं में दूर-दूर तक छिटक पड़ा और आज भी वह रेट से यह घट रही है उसका हिसाब लगाने से सृष्टि पदार्थ हम से दूर जाता हुआ दिखाई दे रहा है ।
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