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जन-जन में फैलाया । लोक सम्पर्क के लिए वहां जो अब उपलब्ध भी नहीं होते । बहुत से जनेतर ग्रंथों को कन्नड और तमिल भाषाएं अलग-अलग प्रदेशों में अन्तर बनाये रखने का श्रेय जनों को प्राप्त है। बोली जाती थीं, उनमें खूब साहित्य निर्माण किया ।
ऐतिहासिक दृष्टि से जैन साहित्य बहुत महत्वपूर्ण अतः इन दोनों भाषाओं का प्राचीन और महत्वपूर्ण
है। भारतीय इतिहास, संस्कृति और लोकजीवन साहित्य जैनों का ही प्राप्त है। इस तरह उत्तर और
सम्बन्धी बहुत ही महत्वपूर्ण सामग्री जैन ग्रंथों व प्रशदक्षिण भारत को प्रधान भाषाओं में जैन साहित्य का
स्तियों एवं लेखों आदि में पायी जाती है। जैन आगम प्रचुर परिमाण में पाया जाना बहत ही उल्लेखनीय
साहित्य में दो-अढाई हजार वर्ष पहले का जो सांस्कृऔर महत्वपर्ण है। भारतीय साहित्य को जैनों की यह
तिक विवरण मिलता है, उसके सम्बन्ध में जगदीश चन्द्र बिशिष्ट देन ही समझी जानी चाहिए।
जैन लिखित "जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज'', विषय वैविध्य--
नामक शोध प्रबन्ध चौखम्बा विद्या भवन-वाराणसी विषय वैविध्य की दृष्टि से भी जैन साहित्य बहुत से प्रकाशित हुआ है, उससे बहुत-सी महत्वपूर्ण वातों महत्वपूर्ण है क्योंकि जीवनोपयोगी प्रायः प्रत्येक का पता चलता है । जैन प्रबन्ध संग्रह पट्टाबलियाँ, विषय के जैन ग्रन्थ रचे गये हैं। इसलिए जैन साहित्य तीर्थ मालाएँ और ऐतिहासिक गीत, काव्य आदि में केवल जैनों के लिए ही उपयोगी नहीं, उसकी सार्वजनिक अनेक छोटे-बड़े ग्रामनगरों वहाँ के शासकों, प्रधान उपयोगिता है । व्याकरण, कोश, छन्द, अलंकार, काव्य- व्यक्तियों का उल्लेख मिलता है । जिनसे छोटे-छोटे शास्त्र, वैद्यक, ज्योतिषि मंत्र-तंत्र, गणित, रत्न परीक्षा गाँवों की प्राचीनता, उनके पुराने नाम और वहाँ की आदि अनेक विषयों के जैन ग्रन्थ प्राकृत, संस्कृत, कन्नड, स्थिति का परिचय मिलता है । बहुत से ऐसे शासको तमिल, और राजस्थानी, हिन्दी, गुजराती में प्राप्त है। के नाम जो इतिहास में कहीं नहीं मिलते, उनका इनमें से कोई ग्रन्थ तो इतने महत्वपूर्ण हैं कि जैनेतरों जैन ग्रथों में उल्लेख मिल जाता है। बहुत से राजाओं ने भी उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की है और उन्हें आदि के काव्य निर्णय में भी जैन सामग्री काफी सूचअपनाया है । जैन विद्वानों ने साहित्यक क्षेत्र में बहत नाएँ देती है, व सहायक होती है। गुर्दावली तो बहुत उदारता रखी । किसी भी विषय का अच्छा नथ महत्वपूर्ण है। कहीं भी उन्हें प्राप्त हो गया तो जैन विद्वानों ने उसकी प्रति यदि मिल सकी तो ले ली या खरीद करवाली,
. जैन साहित्य की गुणवता - नहीं तो नकल करवा के भण्डार में रख ली। जैनेतर अब यहाँ कुछ ऐसे जैन ग्रंथों का संक्षिप्त परिचय ग्रन्थों का पठन-पाठन भी वे बराबर करते ही थे। अतः कराया जायगा जो अपने ढंग के एक ही हैं। आवश्यकता अनुभव करके उन्होंने बहुत से जैनेतर इनमें कई ग्रन्थ तो ऐसे-ऐसे भी हैं जो भारतीय साहित्य ग्रन्थों पर महत्वपूर्ण टीकाएँ लिखी हैं। इससे उन ग्रथों ही में नहीं विश्व साहित्य में भी अजोड़ हैं। प्राचीन का अर्थ या भाव को समझना सबके लिए सुलभ हो भारत में ज्ञान-विज्ञान का कितना अधिक विकास हआ गया और उन ग्रन्थों के प्रचार में अभिवद्धि हई। जैने- था और आगे चलकर उसमें कितना ह्रास हो गया, तर ग्रथों पर जैन टीकाओं सम्बन्धी मेरा खोजपूर्ण इसकी कुछ झाँकी आगे दिये जानेवाले विवरणों से लेख 'भारतीय विद्या' के 2 अंकों में प्रकाशित हो चुका पाठकों को मिल जायगी। ऐसे कई ग्रंथों का तो प्रकाहै। जैन नथों में अनेक बौद्ध और वैदिक ग्रंथों के शन भी हो चुका है पर उनकी जानकारी विरले ही उदाहरण पाये जाते हैं। उनमें से कई जनेतर ग्रथ तो व्यक्तियों को होगी। वास्तव में जैन साहित्य अब तक
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