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इस सूत्रकी प्राचीनताके विषयमें कुछ भी (ग्रन्थका मतभेद नहीं है । दोनों ही सम्प्रदायवाले इसे
समय प्राचीन मानते हैं । श्वेताम्बरलोग महोपाध्याय* * श्रीधर्मसागरजीको पट्टावली आदिसे और खुदने भी तत्त्वार्थभाष्यमें अपनी शाखा उच्चनागरी दिखाई है. इससे श्रीमानको उच्चनागरीशाखाके मानते हैं । यद्यपि श्वेताम्बरलोग प्रज्ञापनानामक चतुर्थ उपांगके रचयिता श्रीमान् श्यामाचार्यक गुरु और दशर्वधर मानते हैं; किन्तु कितनेक ताम्बरलोमउच्चनागरी-शाखा का प्रादुर्भाव श्रीवज्रस्वामीजीके बाद होने से श्रीमान्को सम्पूर्णदशपूर्वधर माननेमें हिचकते हैं। - पाठकों ! श्रीमान् उमास्वातिजीमहाराज सम्पूर्ण दश पूर्वको धारण करनेवाले हों या न हो किन्तु पूर्वको धारण करनेवाले अवश्य थे, और श्रीवीरमहाराजसे इसमी सदीके पेश्तरके थे,क्योंकि श्रीमानजिनदासगणिजी और हरिभद्रसूरिजी वगैरा , श्रीवीरमहाराजकी दसवीं शताब्दीके आचार्यभी तत्त्वार्थादिसूत्रोंकी जीतकल्पचूर्णि, आवश्यकबृहवृत्ति, आदिमें साक्षी देते हैं, और श्रीमान्का बनाया हुआ क्षेत्रसमास जो प्राकृतभाषामें है उसको टीकासे अलंकृत किया है । पूर्वका अभ्यास दसमीशताब्दी तक ही था, यह बात तो सिद्ध ही है, याने इस सूत्रको रचे करीब १५००-१७०० वर्ष हुए हैं, और इसविषयमें किसीके तर्फसे कोई भी शंका
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