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में रहनेवाले एसा. स्पष्ट शब्दार्य लेकर आठही मेद लोकाविकसन्दसे लिये हैं. याने लोकके अन्तमें रहनेवाले लोकान्तिक बाजाय इस व्युत्पत्तिसे निर्देश है, याने आठका रहना ब्रह्मादेवलोकके आखिर में है, इससे उनकोंही लोकान्तिक लिसे है. शिक अपत्तिअर्थकी अपेक्षासे कहा हुआ पदार्थ तत्त्वका घातक नहीं हो सकता । श्वेतांबरोंने अपने मजहबके अनुकूल पाड़ करने का नहीं रखा, परन्तु जैसा पाठ था वैसी ही मान्यता रसी और व्याख्या की है।) सी. इस तरह दिगंबरोंके श्वेतांबरों पर इस सूत्रके श्वेतांबरपने बिलवमें जोर कटाक्ष थे, वे इस लेखद्वारा दिखाये हैं, और उनका
माधान भी श्वेतांबर जिस तरहसे करते हैं वैसा किया गया है। * कितनेक दिगम्बर लोग यह भी कह देते हैं कि नव सूत्रों सतनय मानने पर पांच नय क्यों माना ?
को! आवश्यक, विशेषआवश्यक वगैरह देखते सा है कि नयके भेद दो भी हैं, और तीन भी है चार
र पांच भी है छ भी हैं और सात मी हैं, याने नरके मेवानवा यह भी श्वेतांबरोंके शास्त्रसे प्रतिकूल नहीं है।
जिस प्रकार दिगंबरोंने श्वेतांबरों के प्रति तत्वार्थ राग नहीं है, ऐसा बतलाने के लिये शंकाएं की। Todकी, वर्कसे भी दिगंबरों के प्रति बहर
नहीं है, यह दिखाने के लिये को
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