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इधर 'नरकाः' पद श्वेताम्बरों के हिसाबसे दूसरे सूत्रमें 'तासु' पदकी साथ लगा हुआ था, और इधर नरकावासकी संख्या बीचमें डालकर जो ' नारकाः ' पद डाला है वह असमद्ध हो गया है. इसके लिये 'तेषु' या 'तत्र' पद लगानेकी जरूरत है. इसके आगेके सूत्र में भी तेष्वेक०' इत्यादि सूत्रकी जगह पर भी 'तेषु' यह पद सामान्यभूमिभेदसे नारकोंकों नहीं लग सकेगा. क्योंकि बीच में नरकावासका सूत्र आकर अब 'नरकाः' सामान्यनारकोंका वाचक हो जायगा. बादमें 'तेषु' कहकर भूमिभेदसे नारकोंकी स्थिति बताना असंबद्ध होगा. इससे साफ मालूम होता है कि दिगम्बरोंने अपनी कल्पनासे ही नरकावासका भार इधर डालदिया और 'नारकाः' शब्द सम्बन्ध लगाये बिनाही इधर तीसरे सूत्रमें डाल दिया है. ". (२१) इसी तीसरे अध्यायमें सूत्रदशवेमें दिगम्बर लोग भरतहमवतहरिविदहरम्यकहरण्यवतैरावतवर्षाः क्षेत्राणि' ऐसा सूत्रपाठ मानते हैं. तब श्वेताम्बर लोग 'तत्र भरतहेम. वत' इत्यादि सूत्र पाठ मानते हैं. अब इस जगह पर दिगम्बरोंने 'तत्र' शब्द उड़ा दिया, लेकिन ये भरतादिक्षेत्रोंका स्थान कहाँ मानेगे, क्योंकि तिर्यग्लोकमें सब द्वीपसमुद्रको दिखाकर उनका आकार आदि दिखाये, बादमें ९ वें सूत्र में "तत्' शब्दसे सब द्वीपसमुद्रका परामर्श करके बीचमें जन्द्वीप दिखाया है, अब इस जम्बूद्वीपमें इन भरतादिकको
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