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पृष्ठ १८१ प्रदेशबन्धं वक्ष्यामः । पृष्ठ १८३ संवरं वक्ष्यामः । पृष्ठ १९५ परीषहान् वक्ष्यामः । पृष्ठ २०० इत ऊर्ध्वं यद्वक्ष्यामः ।
इन सब स्थानों में मूलसूत्रकारके विषयमें तीसरे पुरुषके क्रियापदकी जरूरत थी, लेकिन मूल और भाष्यके रचयिता एकही होनेसे सर्वत्र ‘वक्ष्यामः' ऐसा अस्मत्शन्दके क्रियापदका प्रयोग किया है। ल इन सब प्रमाणोसे ज्यादह बलवत्तर प्रमाण नीचे दिखाते हैं. इस नीचे दिये हुए प्रमाणसे साफ मालूम होजायगा कि तत्त्वार्थके मूलसूत्रकार और भाष्यकार एकही है. इस प्रमाणको ज्यादह बलवत्तर कहनेका मुद्दा यह है कि खुदही भाष्यकार महाराज अपनी स्पष्ट वृत्ति दिखाते हैं.
पृष्ठ २३२ वाचकमुख्यस्य० । वाचनया च महा. न्यग्रोधिकाप्रसूतेन० । अर्हद्वचनं सम्यग्गुरु० । इदमुच्चै - गरवाचकेन सत्वानुकम्पया दृब्धं । तत्त्वार्थाधिगमाख्यं स्पष्टमुमास्वातिना ( स्वातितनयेन) शास्त्रम् ॥५॥
ऐसा स्पष्ट प्रमाणमय उल्लेख होने परभी भाष्यकारको नहीं मानना, यह कैसा अभिनिवेशका प्रभाव होगा सो वाचकगण आपही सोचें
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