Book Title: Tattvartha Kartutatnmat Nirnay
Author(s): Sagranandsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 169
________________ (१५८) चरणाहिंतो मोक्खो मोक्खे सोक्खं अणाबाहं । उत्तरा. अध्य. इसी तरहसे पण्णवणाजी और उत्तराध्ययनमें निसर्गाधिगम सम्यत्वका ब्यान पद १ और उत्तराध्य० की गाथाओं में है, सत्संख्याक्षेत्रादिके लिए संतपयपरूवणा अनुयोगद्वारोमें, ज्ञानका सारा अधिकार नन्दीसूत्रमें, नयका अधिकार अनुयोगद्वारमें, मावोका अधिकार अनुयोगद्वारोमें, जीवोके भेद जीवाभिगम और पण्णवणा, शरीरका अधिकार प्रज्ञापनामें और अनुयोगद्वारमें, नरकका अधिकार जीवाभिगम भगवतीजीआदिमें, भरतादिक्षत्रोंके लिए जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति शेष समस्तद्वीपसमुद्रोके लिए भगवतीजी और अनुयोगद्वार और जीवाभिगम, देवताओंका अधिकार स्थानांग समवायांग भगवती प्रज्ञापना जीवाभिगमादि, काल और सूर्य चंद्रादि भ्रमणआदिके लिए स्थानांग भगवती जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति चंद्रप्रज्ञप्ति सूर्यप्रज्ञप्तिआदि, देवताओंकी स्थितिके लिये प्रज्ञापनाका स्थितिपदआदि, धर्मास्तिकायादिद्रव्योंके लिए अनुयोगद्वारस्थानांगभगवतीआदि,पुद्गलोंके स्कन्धवर्ण शब्दके लिए उत्तराध्ययन प्रज्ञापना भगवती स्थानांगादि, उत्पादादि स्याद्वादके लिए नयापेक्षयुक्त अनुयोगद्वार भगवतीआदि, द्रव्यांदिके लक्षणोंके लिए उत्तराध्ययनादि,आश्रवके लिए स्थानांग भगवतीआदि, ज्ञानावरणादिहेतुओंके लिए श्रीभगवतीजी पंचसंग्रहादिप्रकरण देशसर्वविरति और भावनाके लिए सूगडांग आचारांग उपासकदशादि, अतिचारोंके लिए उपासकदशांगश्राद्धप्रतिक्रमणादि, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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