Book Title: Tattvartha Kartutatnmat Nirnay
Author(s): Sagranandsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 179
________________ ( १६८ ) वाला है. यह सब विवरण दर्शनकारों के प्रचारके प्रभावसे ही ज्यादा हुवा है । • ८ सूत्रकारोंने सूत्रकी व्याख्या करते समझे हुए पदार्थक अच्छी तरह से समझाने के लिए नयोंकी जरूरत मानी थी, और इसीसे नयका अधिकार अनुगमके अनन्तर रक्खा था, और 'नत्थि नएहिं विहूणं सुत्तं अत्थो व जिणमए किंची' ऐसा कहके समग्र जिनवचनमें नयकी व्यापकता दिखाई थी, तब वाचकजी ने समग्रपदार्थ के ज्ञान में उन नयोंकी प्रारंभसेही उपयोगिता दिखाके प्रमाणकी तरह नय भी पदार्थअवबोधका मुख्य हेतु है ऐसा दिखाया हैं । મુનિશ્રી નીતિવિજયજી જ્ઞાન ભડાર. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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