Book Title: Tattvartha Kartutatnmat Nirnay
Author(s): Sagranandsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 164
________________ (१५३) य पृष्ठ १६ भाष्यकार लिखते हैं के 'उक्तं भवता मत्यादीनि ज्ञानानि उद्दिश्य तानि विधानतो लक्षणतश्च पुरस्ताद्विस्तरेण वक्ष्याम इति तदुच्यतामिति । अत्रोच्यते । मतिः स्मृतिः संज्ञा चिन्तेत्यादि, इन पंक्तियोंकों सोचनेवाले अकलमंद तो जरूर मंजुर करेंगे के इस वचनसे सूत्रकार और भाष्यकार एकही व्यक्ति है, क्योंके ऐसा नहीं होता तो भाष्यकारक वचनका दाखला लेके शंका उठानी और पीछे सूत्रसे समाधान करना यह दोनोंके का एक न होवे तो कभी भी बने नहीं: इसी तरहसे पृष्ठ ९ 'अणवः स्कंधाश्च (५.२५) संघातभेदभ्य उत्पद्यन्ते ( ५-२६ ) इति वक्ष्यामः, पृष्ठ १६ नयबादान्तरेण तु यथा मतिश्रुत्तविकल्पजानि भवन्ति तथा र पृष्ठ ३२ चारित्रं नवमेऽध्याये वक्ष्यामः, नयान वक्ष्यामः, पृष्ठ ४८ सकषायत्वा० (२.२ . कायवाङ्मनःप्राणा० . (५-१९ नामप्रत्ययाः० ( ८-२४) इति वक्ष्यामः। पृष्ठ १६६ बन्धं वक्ष्यामः । पृष्ठ १७२ स्थितिबन्धं वक्ष्यामः। पृष्ठ १८० अनुभावबन्धं वक्ष्यामः। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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