________________
(१२१)
लेंगे तो दिगंबरोंकी चालाकी समझ सकेंगे. इससे यह छ। का समास करना और सातवींका नरकाबास अलग रखना, यह आगे कहने में आयगी उस स्थितिके सम्बन्ध से विरुद्ध ही है। सबसे ज्यादा तो यह है कि 'नरकाः' यो परमानामा ऐसा कोई भी पद इधर स्वतंत्र नहीं है कि जिसका सम्बन्ला तेषु इस पदके साथ किया जाय. श्वेताम्बर तो 'तासु नरंकार ऐसा सूत्र मानते हैं, इससे 'तेषु' के स्थान में स्वतंत्र नरकमब्द लगा कर सातका सम्बन्ध कर सकेंगे.... . . . : ...
. (२०) इसी अध्यायके तीसरे सूत्र में श्वेताम्बरोंकी मान्यः तासे 'नित्याशुभतरलेश्यापरिणामदेहवेदनाविक्रिया ऐसा सूत्रपाठ है. जब दिगम्बरों के मतसे. 'नारका नित्याशुभतर० पाठ माना है. अब इस स्थानमें सोचिए कि फेरखर दूसरे पत्रों नरकानासका सूत्र बनाया है तो इधर नारकइस पद सम्बन्ध कैसे लमाया ?-याने दिनम्बरों के हिसाबले भी "तेपुर या तत्र' ऐसा कोई पद होना जरूरी काः इससे मालूम होत है कि श्वेताम्बरोंका जो दूसरा सूत्र तासु नरकाः' ऐसा था। उसमें किसीने टिप्पणकी तरहसे नरकाबासकी संख्या लिखी हुई होगी, वह इन दिगम्बराने मूलसूत्रम मिला दी और नरकावासकी संख्याको मिलादेमेसे नस्का:' कह पद कला फाजल हुआ उसको इधर तीसरे सत्र में मिलाया ऐसा न कहना कि- इसमें क्या हर्ज है । क्योंकि असल पो
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org