Book Title: Tattvartha Kartutatnmat Nirnay
Author(s): Sagranandsuri
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 149
________________ ( १३४ ) इस सूत्र में अणुशब्द एकवचनान्त कर दिया है. इस तरह से इधर स्कन्धशब्द भी एकवचनांत ही होना उचित है ऐसा नहीं कहनेका अव्वल कारण तो यह है कि वहां पर अणुशब्द अनुवृत्तिसे लानेका नहीं है. और इधर तो स्कन्धशब्दकी अनुषृत्ति लानी है, और स्कन्धशब्द पेश्तर ही बहुवचनान्त है. दूसरा यह भी सबब है कि अणुका स्थान एक ही है, और स्कन्धके स्थानभी तो अनन्तानन्त हैं, इससे भी स्कन्धशब्द एकवचनान्त होना ठीक नहीं है, दूसरा वहां अणुशब्दका शास्त्रकारने स्पष्ट उच्चार एकवचनमें किया है इन सब सबबको सोचनेसे स्पष्ट हो जायगा कि 'चाक्षुषाः' ऐसे श्वेतांबरोंका मानाहुआ असलशब्दको इन दिगंबरोनें पलटाया है. जैसे इन सूत्रोंपर दिगम्बरोंका तत्वार्थसूत्र जो निर्णयसागर - प्रेसकी ओरसे छपाहुआ जैननित्यपाठ संग्रह में है उसके पाठकी अपेक्षा से समीक्षा की हैं, इसी तरहसे दूसरे भी सूत्रोंका विचार उसी ही किताबसे किया है, यदि दिगम्बर भाइयों की मान्यता और तरहकी होवे तो सूचित करें कि जिससे हम असत्याक्षेप से बच जायें. · (३५) इसी ही पांचवें अध्यायके ३७ वें सूत्रका पाठ दिगम्बर लोग ऐसा मानते हैं कि 'बंधेऽधिको पारिणामिकौ चयाने पुद्गलोंका परस्पर बन्ध होनेमें जो अधिकगुण होता है वह पारिणामिक याने दूसरे को पलटा देता है. For Personal & Private Use Only Jain Education International : www.jainelibrary.org

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