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पेशरके सूत्रसे औपशमिकादिक सर्वभावका निषेध होगया तो पीछे दूसरे सूत्र में 'अन्यत्र' आदि कहनेसे क्या होगा ? याने देवदत्तका मरण होजाने बाद उसके मारनेवालेको मार दें तो क्या देवदत्त जिन्दा हो जायगा ? देवदत्तके जिन्दा रहते हो. मारनेवाला मारा जाय तो देवदत्त बच सक्ता है. इसी तरहसे इधर भी आद्यसूत्रसे औपशमिकादिकभावोंका निषेध कर दिया तो फिर दूसरे 'अन्यत्र.' इस सूत्रसे क्या होगा ? यांने न तो ऐसे स्थान में दो सूत्र करनेका इन आचार्यभगवानका नियम है, और अन्यआचार्य भी ऐसे अलग सूत्र नहीं करते हैं.
और निषेध करके फिर दूसरे सूत्रसे अन्यत्र कहकर रुकनेकी योग्यता भी नहीं है. इससे इधर दो सूत्र अलग करना लाजिम ही नहीं था अब ये सूत्र अलग करने योग्य नहीं थे इतनाही नहीं, लोकिन अलग करने में दिगम्बरोंको कितना हरज होता है वह देखिये. दिगम्बरोंने 'औपशमिकादिभव्यत्वानां च ऐसा सूत्र बनाया है इस सूत्रमें षष्ठीका अन्वय कहां करना उसका पता ही नहीं है. यदि कहा जाय कि इसके पेश्तरके 'कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्ष: इस सूत्र में विप्रमोक्ष शब्द है उस की अनुवृत्ति करेंगे और उससे यह अर्थ होगा कि औपशमि कादिक भावोंका भी विप्रमोक्ष होजाना उसका नाम मोक्ष है. लेकिन यह कहना नियमसे विरुद्ध है, क्योंकि विप्रमोक्ष शब्द जो हे वह कृत्स्नकर्मके साथ समाससे लगा हुआ है, और
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