________________
( १०८ )
और सबही मजहब वाले वक्षुका विषय वर्ण नहीं मानते हैं, किंतु रूपही मानते हैं, तो फिर इधर विषयके स्थामें रूपही कहना मुनासिब है. और पुद्गलके स्थान में ही वर्ण शब्द लाजिम है, लोकिन 'तदर्था:' पद जो किया है वह ठीक नहीं है. इसका असल तो यह कारण है कि इधर अर्थशब्दको समास कर लेनेसे आगे के 'सूत्रमें 'भुतमनिन्द्रियस्य' के स्थान में अर्थशब्दकी अनुवृत्ति नहीं होगी और इधर 'अर्था' पद रक्खा तो वहां 'अर्थ:' ऐसा एकवचनान्तं पद लगाना कैसे होगा ? दूसरी बात यह भी है कि पेस्तरके सूत्र में 'श्रोत्राणि' ऐसा बहुवचनान्त सूत्र है. उसका सम्बन्ध 'तेषां' ऐसे बहुवचन बिना कैसे लगाना १ यदि सम्बन्ध ही नहीं लगाना है तो फिर तद्शब्दका प्रयोजन ही क्या है ? तीसरी बात यह है कि 'अर्था' ऐसा बहुवचन रखने से हरएक इन्द्रियमें हरएक विषयकी प्राप्ति हो जायगी.. इससे एकवचन करने से एक २ इन्द्रियका एक एक ही विषय सम्बद्ध होगा. इससे साफ होगा कि 'तेषामर्थः' ऐसा ही पद रखना लाजिम होगा.
,
(८) सूत्र २९ में दिगम्बरोंने 'एकसमयाऽविग्रहा' ऐसा -सूत्र माना है, और श्वेताम्बरोंने 'एकसमयोऽविग्रहः' ऐसा सूत्र माना है. दिगम्बरोंके हिसाब से यह सूत्र अविग्रहानामकी गतिका स्वरूप दिखाने के लिये है. अविग्रहा नामकी गति जो सूत्र २१ में कही गई है उसका इधर स्वरूप है याने वहां सूत्र
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org