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( १११ )
राज यहां पर वाशब्द की व्याख्या में उपलक्षणसे पांचसमयकी गति और तीनसमयका अनाहारपना दिखाते हैं. लोकन तीनसमयकी या चारसमयकी गति लेना और तनिसमयका अनाहारकपना लेना यह तो साफ ही अयोग्य हैं, सूत्रकार श्रीउमास्वातिर्जाने भी 'प्राक् चतुर्भ्यः' ऐसा कहकर तीनों ही विग्रह इधर लिये हैं और विग्रह जितने होवें उतने ही अनाहारपन लेना होता तब तो 'अनाहारविग्रहवती ० ' या ' विग्रहवदनाद्वारा०' ऐसा एक ही सूत्र कर देते. अलग अलग विग्रह और अनाहारका सूत्र करनेकी कुछ भी जरूर नहीं थी, परन्तु अन्तका विग्रह अनाहार में नहीं लेना है जिससे सूत्र अलग करना ही जरूरी था ।
( ११ ) सूत्र ३१ में दिगम्बरलोग संमूर्च्छनगर्भेपपादाज्जन्म' ऐसा सूत्र मानते हैं. पेश्तर तो दिगम्बरोंनें उपपादशब्द उपपातके स्थान में धरा है. इधर ही नहीं, लेकिन आगे भी जहां जहां पर औपपातिक या उपपातशब्द आता है वहां वहां पर भी इन्होंने 'त' के स्थान में 'द' कर दिया है लेकिन यह उनका रिवाज अपनी परिभाषाको दिखानेके लिये ही है उनके रिवाज से तो गतिशब्द के स्थान में भी 'गदि' शब्द कर देवें तो ताज्जुब नहीं, अस्तु लेकिन इधर 'उपपादात्' करके पंचमीका एकवचन कैसे लगाया ? इधर गर्भ, संमूच्छिम और उपपात इन तीन तरह से जन्म दिखानेका है तो पीछे एकवचन
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