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कैसे रखा ? सूत्रकार महाराज तो स्थान स्थान पर एकस्थान में एकवचन दोके स्थानमें द्विवचन और बहुतके स्थान में बहुवचन स्पष्टपनेसे कहते ही हैं. इधर एकवचनका प्रयोग सिर्फ दिगी कल्पनाका ही फल है. ऐसा नहीं कहना कि 'उपपाता' ऐसा बहुवचन रखनेसे 'जन्म' के स्थान में भी बहुवचन रखना होगा. ऐसा नहीं कहनेका सबब यह है कि उद्देश्यस्थान में बहुवचन होने पर भी विधेयके स्थान में तो 'तत्त्व' 'न्यासः' 'ज्ञानं' आदिस्थानोंमें दोनोंके पाठोंमें ऐसे एकवचन साफ ही है ।
( १२ ) सूत्र ३३ में दिगम्बरों के मतसे 'जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः' ऐसा पाठ है, तब श्वेताम्बरोंके मत से 'जराखण्डपोटजाना गर्मः ऐसा कट है, अम्बल तो इधर व्याकरणके नियम के अन्त या आदिमें लगा हुआ पद सबको लग सकता है, तो पीछे जरायु और अण्डकी साथ जनिधातुका बना हुआ 'ज' लेगानेकी क्या जरूरत थी ? याने आगेके 'ज' से दोनोंका सम्बन्ध हो जायगा. ऐसा नहीं कहनेका होगा कि इधर तो कृदन्त है. क्योंकि दोनों पद पेश्तर रहें तब भी आगेका जनिधातुसे प्रत्यय आकर ज बननेमें हर्ज नहीं होगा. आश्चर्य की बात तो यह है कि जरायु और अण्डके आगे ती जनधातु से बना हुआ 'ज' लगाया, और पोतके आगे ती वह भी नहीं लगाया. पोतशब्दका अर्थ पोतज हो जायमा
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