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जायगा. लेकिन गति होनेकी ही बात रहेगी यनि गति नहीं होनेकी तो बात किसी भी तरहसे रह सके ऐसी नहीं है. इस सबबसे साफ सबूत होता है कि किसी दिगम्बरने अपनी अकलकी न्यूनतासे पूर्णतया सोचे बिना ही यह सूत्र इधर बढा दिया है, श्वेताम्बरलोग तो इस सूत्रको मंजूर नहीं करते हैं.
उपर्युक्त २८ मुद्दोंको सोचनेवाले मनुष्यों को साफ साफ मालूम हो जायगा कि दिगम्बरोंने अपनी बदद्यानतसे या अकलकी न्यूनतासे एक छोटेसे ही तत्वार्थसूत्र में कमबेशीपना करके स्वच्छन्दताका राज्य जमाया है.
जिस तरहसे इन दिगम्बरोंने असली सूत्रोंको उडाकर तथा नये सूत्रोंको डालकर सूत्रमय ग्रन्थमें घोटाला, किया है उसी तरहसे इन दिगम्बरोंने श्रीमान्उमास्वातिकाचकजीमहाराजके बनाये हुए इस तत्त्वार्थग्रंथके सूत्रोंको भी स्थान: स्थान पर न्यूनाधिक करके पूरा घोटाला कर दिया है. यह बात वाचकोंको आगेके लेखसे साफ मालूम हो जावेगी।
इस तत्त्वार्थ सरीखे एक दो सौ श्लोकके ग्रन्थमें दिगम्बरोंने सूत्रोंका सर्वथा बढाना और घटाना कितना जबरदस्त कर दिया है। यह बात उपर्युक्त भागसे साबित कर दी है. अब इन्हीं दिगम्बरोंने इसी तत्त्वार्थमें कौन २ सूत्रोंके पाठमें न्यूनान धिकता की है, यह दिखलाया जाता है, यद्यपि इन्होंने के स्थानमें 'व' और 'त' के स्थानमें 'द' अपायके स्थानमें बवाल
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