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वें सूत्रमें देवियां सामानिक व परिषद्वाली हैं ऐसा दिखलाया गया है, तो फिर सामानिक और पारिषद्यकी संख्या. कहांसे लेनी ? इतनाही नहीं, बाल्क इससे तो नियम हो जायगा कि देवियोंको अभियोग अनीक आत्मरक्षक आदिका अभावही है. २०वें सूत्र में गंगाआदि नदियोंको हिमवदादिके मध्य में रहनेवाली या जानेवाली दिखाई हैं, किन्तु वे वर्षधरमें पूर्वकी ओर जाती हैं या पश्चिमकी ओर ? उत्तरकी ओर बहती हैं या दक्षिणकी ओर ? वर्षधर ६ हैं और नदियां १४ तो व्यवस्था कैसे होगी? और उस व्यवस्थाका सूचक एकअक्षर भी सूत्रमें नहीं दिया गया है, यह बात भी विचारणीय है। इक्कइसवें और बावीसवें सूत्र में पूर्व और पश्चिम जाना कहागया यह कहांतक ठीक है ? क्योंकि गंगा, सिंधु इत्यादि नदियां भरत एरवत दक्षिण उत्तरमें आयगी इसका क्या? और वर्षधरपर भी हरएक नदी अलग २. दिशाओंमें कितनी २ दूर और किस २ दिशामें पीछे बहती है इसका तो इधर कुछ वर्णन . भी नहीं है । तेवीसवेंसूत्र में गंगा, सिंधुका परिवार तो दिखाया, किन्तु और नदियोंका परिवार कितना है ? विदेहके विभाग किससे होते हैं ? उसका प्रमाण क्या है ? इत्यादि बातोंका इधर नाम निशानही नहीं है। २४
और २५ वें सूत्रों में भरतादिकका इषुका विस्तार तो दिखाया किन्न आयाम जीवा धनुःपृष्ठकी बात तो दिखाईही नहीं ॥ २४ और २८. सूत्रोंमें ६ आरके स्वरूपको दिखाते आयुगीर
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