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असली मगधदेशकी हकीकत, संज्ञा, वर्त्ताव, संकेत आदिकी विद्यमानता सूत्रों में देखकर कोई भी आदमी श्वेताम्बरों के सूत्रों को असली सूत्र है ऐसे कहे बिना नहीं रह सकता है. गद्यपद्यका या सुगम कठिनताका विषय लेकर जो कुछ अकलमंदको अग्राह्य ऐसा अनुमान कितनेक लोगोंकी तरफ से किया जाय तो वह भी झूठ है, क्योंकि जो आदमी प्रवाहमय संस्कृत भाषामें दिनों तक वाद करता है वही आदमी अपने गृहमें औरत लडकोआदिके साथ ग्राम्यभाषा में भी बात करता ही है. श्रीमान् हरिभद्रसूरिजीने अति कठिन अनेकान्तजयपताकादि जैसे न्यायग्रंथ बनाये और उन्होंने ही श्रीसमरादित्यकथा जैसा कथानकमय प्रसन्नग्रंथ भी बनाया, और जिन श्रीमान् हेमचन्द्रसूरिजीने शब्दानुशासन और प्रमाणमीमांसा सरीखे व्याकरण और न्यायके प्रौढग्रंथ बनाये उन्होंने ही त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र और परिशिष्टपर्व सरीखे कथानकमय सरल ग्रंथ भी बनाये. जिन सोमप्रभाचार्यजीने हरएक काव्य के सौ अर्थ बनें ऐसा काव्य रचा. उन्हीं सोमप्रभाचार्यजीनें सिन्दूरप्रकरण जैसा प्रसन्नकाव्य बनाया, इसी तरह सूत्रकी पूर्वापर भाषादिमें भी होना असंभावित नहीं है, तो फिर श्वेताम्बरोंके असली सूत्रको दिगम्बर नहीं मानते उसमें उनका हठकदाग्रहके अतिरिक्त दूसरा कोई भी सच नहीं मालुम होता है
( २१ ) आठवें
अध्याय के अन्तम
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