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से भी श्री उमास्वाति का वचन ज्यादह मान्य करते होंगे, अन्यथा दिगम्बरोंके बुझगौनें तत्त्वार्थआदिका रक्षण किया और भगवान के वचनका एक टुकड़ा भी क्यों नहीं रक्खाः,
इस स्थान में दिगम्बरोंको सोचना चाहिये कि तुम्हारे पूर्व पुरुषोंने जो पुराण आदि बनाये वे भगवानके वचन से बनाये कि अपनी कल्पनासे बनाये ? यदि कहा जाय कि भगवान के वचनको देखकर उसके अनुसारही बनाये, तो फिर उन आचार्य के बनाये हुए तो पुराणादिके लाखों श्लोक अभी तक हाजिर रहे और भगवानका शास्त्र सर्वथा व्युच्छेद ही होगया यह बात कैसे हुई ?
दूसरी यह भी बात सोचने काबिल है कि क्या दिगं बरोंके पूर्वपुरुष ऐसे हुए कि पुराणादिक के जो कथानकादिमय हैं उन ग्रन्थोंका तो रक्षण किया और भगवान् के अमूल्य वचनरूप सूत्रोंको व्युच्छेद होने दिया ? यह बात भी सोचने लायक है कि क्या दिगम्बरोंके पूर्वपुरुष ऐसे हुए होंगे कि पांच सात हजार श्लोक भी याद नहीं रख सके ? यदि याद रख सक्ते होते तो भगवान के वचनके लाखों श्लोक न भी रह सके, परन्तु हजारों श्लोक तो जरूर रहते, और ऐसा होता तो दिगम्बरोंकों " बदमाश देनदारको बहियां ही नहीं हैं" इस लोकोक्ति अनुसार "भगवान के सूत्र सर्वथा व्युच्छेद होगये, अब भगवानके वचन है ही नहीं" ऐसा कहनेका मौका ही कहांसे आता ?
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