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साधन ही उपकरण हैं ! जैसे क्षुधापरिषहको जीतना और आहारकी अपेक्षा नहीं रखना, वैसेही पिपासापरिषहको जीतना और पानीकी अपेक्षा नहीं रखना. यदी शक्ति चले तब आव: श्यक ही है, लेकिन जब अनाहारपने और निर्जल ठहरना नहीं होसके तब शुद्ध आहार, पानीको लेनेपर भी क्षुधा और पिपासापरिषह सहन किया ऐसा कहा जाता है. उसी तरह वस्त्रादिक उपकरणके विषयमें भी संयमादिके लिये शुद्धअल्पमूल्यादिवत्रा. दिक उपकरण रखना नाग्न्यपरिषहजयका बाधक नहीं है, इसी कारणसे तो नाग्न्यकों परिषहमें गिनाया. यदि निरपवाद होता तो इसकी गिनती भी मुख्यत्रतोंमें होती।
(१२) पाठकों ! दिगंबरोंकी मान्यता भुजब शीत और उष्ण परिषहब दंशमशक नहीं जीत सके याने शीतस उरके धूपमें आवे या धूपसे डरके छायामें जावे या दंशमशकके भयसे कोसे बहार नीकले तो केवल इतनी सी ही बातपर साधपना चला जाना मानना पडेगा। क्योंकि शुद्धवस्त्रादिक तो उनको मंजूर नहीं है, फिर अग्न्यादिका आरंभ या सरक जाना क्या मंजूर कर सकेंगे?, ख्याल रखना के अग्निका परिभोग साधुको महाबतका बाधक है और अग्न्यादिकके आरंभसे साधपनाका समूल नाश होजाता है। ..
(१३ दिगंबरोंकी मान्यतानुसार शय्यापरीषह और निषद्यापरीषह कैसे बन सक्ते हैं ?, यदि शय्यादिके निर्ममत्वसे
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