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। २०) (३.) श्रीमान्ने वैमानिकदेवोंकी लेश्या, प्रवीचार और स्थिति के लिये जो जो सूत्र बनायें हैं वे दिगम्बरसंप्रदायक माने हुए १६ देवलोकके हिसाबसे प्रतिकूल हैं, किंतु के सब श्वेताम्बरके माने हुए। १२ देवलोकके हिसाबसे ही अनुकूल हैं. देखिये ! दिगम्बरलोग. १ सौधर्म २ ईशान ३ सनत्कुमार ४ माहेन्द्र ५ ब्रह्म ६. ब्रह्मोत्तर ७ लांतब ८ कापिष्ट ९ शुक्र १० महाशुक्र.११ शतार १२.सहस्रार १३ आनत १४ प्राणत१५ आरण और १६. अच्युल. इस प्रकार.१६ देवलोक मानते हैं. अर्थात् ब्रह्मोत्तर, कापिष्ट, शुक्र और शतार इन चारको ज्यादा मानते है.अन इधर श्वेतांबरोके हिसाबसे लांतकदेवलोकके देवसे आगेके सब देवलोकवाले देवोंकी शुक्ललेश्या होती है. पहिले और दूसरे देवलोकके देवताओंकी पीत याने तेजसलेश्या,तीसरे चौथे और पांचवें ये तीन देवलोकवाले देवोंकी पद्मलेश्या और शेष लांतकादिदेकोंको शुक्ललेश्या ही होती है. और इसी मुताविक सूत्रकारने भी"पीतपत्रशुक्ललेश्या द्वित्रिशेषेषु" इस सूत्रसे खुलंखुल्ला बतला भी दिया है. अब उधर दिगम्बरलोग शुक्ललेश्या कापिष्टसे मानते हैं किन्तु कापिष्टसे पेश्तर तो पांच देवलोक नहीं हैं, किंतु सात है इसका क्या होगा?,तब यहां पर इनकी बोलती बंद होजाती है. कितनेक देवलोकमें जबरन लेश्याका मिश्रपन मान लेते हैं. इससे साफ २ सिद्ध होगया कि लेश्यांके हिसाबसे भी श्वेतांबरोंके ही अनुकूल ग्रंथकारमहाराजने सिर्फ १२ ही देवलोक माने हैं.
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