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निरयावलिया-कल्पिका : एक समीक्षात्मक अध्ययन : २९
युद्ध क्षेत्र में आए और क्रमश: वे सभी राजा चेटक के अचूक बाण से मर कर नरक में गए। इस प्रकार क्रमशः नौ अध्यायों में नौ भाईयों का वर्णन किया गया है।
बौद्ध साहित्य में भी यह प्रकरण कुछ भिन्न प्रकार से मिलता है। गंगा तट के एकपट्टन के सन्निकट पर्वत में रत्नों की खान थी । ३६ अजातशत्रु और लिच्छवियों में यह तय हुआ कि आधे-आधे रत्न परस्पर में ले लेंगे। अजातशत्रु किसी कारण वश समय से नहीं पहुँच सका और लिच्छवी सभी रत्न लेकर चले गए। उसे क्रोध आया और वह गणतंत्र के साथ युद्ध कैसे किया जाए विचार करने लगा, क्योंकि उनके बाण कभी निष्फल नहीं जाते। ३७ यही सोचकर वह हर बार युद्ध का विचार स्थगित करता रहा, परन्तु अत्यधिक परेशान हो जाने पर उसने मन में निश्चय कर लिया कि मैं वज्जियों का अवश्य विनाश करूँगा। उसने अपने महामंत्री वस्सकार को बुलाकर तथागत बुद्ध के पास भेजा । ३ तथागत बुद्ध ने कहा- वज्जियों में सात बातें हैं१. सन्निपात- बहुल है अर्थात् वे अधिवेशन में सभी उपस्थित रहते हैं । २. उनमें एकमत है जब सन्निपात भेरी बजती है तब वे चाहे जिस स्थिति में हो सभी एक हो जाते हैं । ३. वज्जी अप्रज्ञप्त (अवैधानिक) बात को स्वीकार नहीं करते और वैधानिक बात का उच्छेद नहीं करते। ४. वज्जी वृद्ध व गुरुजनों का सत्कार सम्मान करते हैं। ५. वज्जी कुलस्त्रियों और कुल-कुमारियों के साथ न तो बलात्कार करते हैं और न बलपूर्वक विवाह करते हैं । ६. वज्जी अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं करते। ७. वज्जी अर्हतों के नियमों का पालन करते हैं, इसलिए अर्हत् उनके वहाँ पर आते रहते हैं। ये सात नियम जब तक वज्जियों में हैं और रहेंगे तब तक कोई भी शक्ति उन्हें पराजित नहीं कर सकती । ३९ प्रधान अमात्य वस्सकार ने आकर सारी बात अजातशत्रु से कही और कहा कि जब तक उनमें भेद नहीं होगा उन्हें कोई भी शक्ति हानि नहीं पहुँचा सकती। अजातशत्रु ने वस्सकार को आरोपित कर अमात्य पद से हटा दिया और वस्सकार वज्जियों के बीच रहने लगा। तीन साल बाद वज्जियों में मतभेद उत्पन्न कर वस्सकार अजातशत्रु को सूचित करता है - अभी वज्जियों में मतभेद है, अतः आप आक्रमण कर सकते हैं। तब अजातशत्रु ससैन्य आक्रमण करता है और वैशाली गणराज्य का नाश कर देता है । ४०
जैन एवं बौद्ध दोनों ही परम्पराओं में मगध विजय और वैशाली के नष्ट होने के विवरण मिलते हैं। जैन दृष्टि से चेटक १८ गण देशों का नायक था। बौद्ध परम्परा उसे केवल प्रतिपक्षी ही मानती है। जैन दृष्टि से कूणिक के पास ३३ करोड़ सेना थी तो चेटक के पास ५७ करोड़ सेना थी। दोनों ही युद्धों में एक करोड़ अस्सी लाख मानवों का संहार हुआ। बौद्ध दृष्टि से युद्ध का निमित्त रत्नराशि है, जबकि जैन परम्परा