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श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३/अप्रैल-सितम्बर २००७
इसके अतिरिक्त शिक्षार्थी चाहें तो उक्त विषय (भाषा एवं वैकल्पिक) समूह में से किसी एक विषय को ऐच्छिक विषय के रूप में पढ़ सकते हैं।
बिहार परीक्षा बोर्ड में प्राकृत-पाली भाषा को सम्मिलित किये जाने के नेपथ्य में प्रो० रामजी राय, अध्यक्ष स्नातकोत्तर प्राकृत एवं जैनशास्त्र विभाग, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा के अथक परिश्रम को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता है। उनके इस महनीय कार्य के लिए पार्श्वनाथ विद्यापीठ उनके प्रति अपना आभार प्रकट करता है।
____ डॉ० प्रेमसुमन जैन राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित
नई दिल्ली। भारत के राष्ट्रपति महामहिम ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने राजस्थान के जैनविद्या मनीषी प्रोफेसर डॉ० प्रेम सुमन जैन को पालि-प्राकृत साहित्य में निपुणता तथा शास्त्र में पाण्डित्य के लिए २१ मई २००७ को राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रमाण-पत्र एवं शाल प्रदान कर सम्मानित किया। प्रो० जैन ने विगत ३५ वर्षों से प्राकृत भाषा एवं साहित्य के प्रचार-प्रसार और शिक्षण हेतु दर्जनों पुस्तकें लिखी हैं और लगभग १५० शोध-पत्र प्रकाशित किये हैं। डॉ० जैन मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर में प्राकृत विभाग के आचार्य एवं अध्यक्ष रहे हैं। सैकड़ों विद्यार्थियों को आपने प्राकृत भाषा की शिक्षा दी है और लगभग २० शोध छात्रों ने आपसे पी-एच०डी० के लिए निर्देशन प्राप्त किया है।
प्रो० जैन का जन्म मध्य-प्रदेश के एक छोटे से गाँव सिहुंडी में हुआ था, किंतु आपने कटनी, वाराणसी, वैशाली और बोधगया में शिक्षा प्राप्त कर अपने को देशव्यापी बना लिया। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद के इस कथन ने आपको प्राकृत अध्ययन के लिए प्रेरित किया कि 'प्राकृत भाषा के अध्ययन के बिना भारत के इतिहास का ज्ञान अधूरा है।' डॉ० जैन ने प्राकृत अध्ययन द्वारा देश की संस्कृति के अनेक पक्षों को अपने साहित्य द्वारा उजागर किया है। आपकी 'कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन' पुस्तक इस क्षेत्र की अनुपम कृति है। आपकी 'प्राकृत स्वयं शिक्षक' पुस्तक ने हजारों लोगों को प्राकृत सिखाया है। परमपूज्य आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज की सत् प्रेरणा से आपने प्राकृत शोधपत्रिका 'प्राकृतविद्या' का सम्पादन प्रारंभ किया जो आज भी श्री कुंदकुंद भारती, प्राकृत भवन, नई दिल्ली से प्रकाशित हो रही है। प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर
और राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं संशोधन संस्थान श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) आदि संस्थाओं से आप उसकी स्थापना काल से जुड़े रहे हैं।
प्रो० जैन को प्राप्त इस राष्ट्रीय सम्मान के लिए पार्श्वनाथ विद्यापीठ उनको हार्दिक बधाई देता है।