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श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३ / अप्रैल-सितम्बर २००७
भाषा में है। प्रथम दिन उद्घाटन सत्र में गोस्वामी श्याम मनोहर पठित शोध-पत्र 'ख्यातिवाद की चर्चा में कुछ पुर: स्फूर्तिक विचार - बिन्दु' के अन्तर्गत भ्रान्ति के विषम स्वरूप और उसके ज्ञान की सत्यता-असत्यता को उद्घाटित करने का प्रयास किया गया है। दूसरे दिन प्रथम सत्र में डॉ० सुधांशु शेखर शास्त्री द्वारा 'अनिर्वचनीयख्याति' विषय पर शोध-पत्र वाचित किया गया जिसमें डॉ० शास्त्री ने अनिवर्चनीयख्याति पर सारगर्भित मन्तव्य प्रस्तुत किया है। साथ ही डॉ० सुनन्दा शास्त्री पठित 'Anyakhyati in comparision with Vijñānabhiksu's view in Yogsutra' एवं डॉ० यज्ञेश्वर शास्त्री पठित 'Madhyamika's Theory of Error in Comparision with Anyakhyati of śuddhādavaita School' दोनों शोध-पत्र सारगर्भित परिचर्चा से परिपूर्ण हैं। दूसरे ही दिन द्वितीय सत्र में डॉ० अम्बिकादत्त शर्मा पठित 'बाह्यार्थवादी बौद्ध सम्मत ख्यातिविचार एवं अन्यथाख्याति'; डॉ० किशोर नाथ द्वारा 'ख्याति के प्रसंग में सांख्य तथा वाल्लभ - वेदान्त का तुलनामूलक अध्ययन' एवं डॉ० बलिराम शुक्ल पठित 'नव्यनैयायिकानाम् अन्यथाख्यातिवादः' अपने-अपने विषम वैशिष्ट्य को स्थापित करने में समर्थ हैं। तीसरे दिन प्रात:कालीन सत्र में डॉ० पारसनाथ द्विवेदी द्वारा 'अन्यख्यात्यनिर्वचनीयख्याती', डॉ० के० ई० देवनाथन द्वारा 'यथार्थख्याति : ' एवं प्रो० राजेन्द्र मिश्र द्वारा 'काश्मीर शैव सिद्धान्त के विशेष परिप्रेक्ष्य में शुद्धाद्वैत वादाभिमत ख्यातिविचार की समीक्षा' विषय पर विद्वतापूर्ण शोध-पत्रों का वाचन हुआ। शोध - 1 - पत्र वाचनोपरान्त इन सभी पर हुई चर्चा विषय की गहराई को समझाने में समर्थ है। तीसरे दिन के मध्याह्न सत्र में डॉ० विन्ध्येश्वरी प्रसाद मिश्र पठित 'श्री वल्लभ वेदान्ताभिमतान्यख्यातिः श्रीमद्भागवतनिरूपित - विकल्पख्यातिः च' प्रो० डी० प्रह्लादाचार पठित 'माध्ववेदान्तीयाभिनवान्यथाख्यातिः', एवं डॉ० बी० के० लाई पठित Jain Theory of error' विषय पर चर्चा हुई। विषय विशेष से सम्बन्धित उत्कृष्ट शोध-पत्रों पर हुई विशिष्ट चर्चा इस ग्रन्थ की महत्ता को दर्शाता है। इस ग्रन्थ में पठित शोध-पत्रों के अतिरिक्त चार अन्य विद्वानों के आलेखों का अंकन भी है जो इस प्रकार है- ' का समुचिता अन्यख्यातिः अन्यथाख्यातिः वा? (डॉ० सच्चिदान्द मिश्र), ' Some Reflections on Nimbārk's Theory of Perceptual Error (Dr. Madan Mohan Agrawal)', 'Perceptual Error : The Western Viewpoint' (Dr. Sri Niwas Rao ) ' एवं 'पश्चिमी दर्शन में भ्रान्ति विचार के विकास की रूपरेखा वाल्लभ वेदान्तानुसारी : एक विमर्श (गोस्वामी श्याम मनोहर ) |
अन्त में कहा जा सकता है कि इस ग्रन्थ में ख्यातिवाद से सम्बन्धित जितनी सामग्री उपलब्ध है वह अन्यत्र दुर्लभ है। इतने कम मूल्य में इतनी उत्कृष्ट सामग्री एक