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साहित्य सत्कार : २३३
जगह उपलब्ध होना संभव नहीं है अत: यह पुस्तक दर्शनशास्त्र के ज्ञानपिपासु पाठकों एवं शोधार्थियों के लिए अत्यन्त ही उपयोगी, पठनीय एवं संग्रहनीय है।
__डॉ० राघवेन्द्र पाण्डेय २. प्रवचनसार भाषाकवित्त (पण्डित देवीदास विरचित), सम्पादन एवं अनुवाद- डॉ० श्रेयांश कुमार सिंघई, प्रका०- भारतीय श्रुति दर्शन केन्द्र, जयपुर, संस्करण-प्रथम (२००६), आकार-डिमाई, पृ० ४१६, मूल्य रु० ५०/- |
___ प्रस्तुत ग्रन्थ 'प्रवचनसार भाषाकवित्त' आचार्य कुन्दकुन्द के 'प्रवचनसार' का हिन्दी पद्यानुवाद है जिसे पं० देवीदास ने अपनी लेखनी से मूर्त रूप दिया है। दर्शन एवं धर्मशास्त्र के दुरूह शब्दों को जब सरल-सुबोध भाषा देने का प्रयास किया जाता है जिसे आम-जन भी आत्मसात कर सके तब वह प्रवचन कहलाता है। प्रस्तुत ग्रन्थ को पं० देवीदास ने हिन्दी भाषा में प्ररूपित किया है इसका सुन्दर एवं सरल भाषा में अनुवाद डॉ० श्रेयांश कुमार सिंघई जी ने किया है।
मनुष्य का चरम लक्ष्य होता है जीवन में प्राप्त होने वाले दुःखों का परिहार कर सुख की प्राप्ति करना। परन्तु ये सुख हमें उचित माध्यम से ही प्राप्त होने चाहिए। मुक्ति विषयक दृष्टि से प्रवचन काफी महत्त्वपूर्ण होता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रस्तावना के अन्तर्गत प्रवचन से सम्बन्धित स्रोत, शास्त्रीय अवधारणा एवं उसके अधिकारों आदि पर सारगर्भित विचार किया गया है। इसमें आचार्य कुन्दकुन्द का प्रवचनसार और उसकी विभिन्न टीकाओं के विषय में भी बताने का प्रयास किया गया है। ज्ञानतत्त्व अधिकार शीर्षक के अन्तर्गत चौबीस तीर्थकरों की स्तुति के साथ-साथ भूत-भविष्य के सभी तीर्थंकरों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों, साधुओं आदि की स्तुति भी की गई है। ज्ञेयतत्त्व अधिकार शीर्षक के अन्तर्गत पदार्थ, द्रव्य, जीव, आत्मा, आकाश, काल, पुद्गल, बन्धन, मोक्ष-मार्ग के स्वरूप आदि पर विस्तृत विवेचना है। चारित्र अधिकार शीर्षक के अन्तर्गत आचार-विचार की चर्चा है। मुनि के लिए विभिन्न आचार-विचारों का निर्देश है। अत: प्रस्तुत ग्रन्थ जैन धर्म एवं आचार दर्शन के ज्ञानपिपासु पाठकों के लिए उपयोगी है।
डॉ० राघवेन्द्र पाण्डेय ३. जैनागमों में अष्टांगयोग, लेखक - श्री आत्माराम जी म०, सम्पा० - श्री शिवमुनि जी म०, प्रका० - प्रज्ञा, ध्यान एवं स्वाध्याय केन्द्र, पुणे, संस्करणद्वितीय (२००३), आकार-डिमाई, पृ०-१५४ ।