Book Title: Sramana 2007 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 236
________________ साहित्य सत्कार : २३१ विषयों में आचार्य भिक्षु से आचार्य महाप्रज्ञ के काल तक की श्रमणियों का उल्लेख किया गया है। इसमें, तेरापंथ संघ की स्थापना ( तेरापंथ सम्प्रदाय स्थानकवासी परम्परा से ही निकला हुआ है अत: यह संघ प्राचीन नहीं है), तेरापंथ संघ की श्रमणियां, आचार्य भिक्षु, भारमल जी, रायचंद जी, जीतमल जी (जयाचार्य), मघवागणी, माणकगणी, डालगणी, कालूगणी, तुलसीगणी तथा आचार्य महाप्रज्ञ के काल की श्रमणियों का वर्णन इसमें किया गया है। यहां यह उल्लेख करना चाहूंगी कि तेरापंथ धर्मसंघ में साधु-साध्वीवृन्द- अर्थात् दोनों का ही इतिहास मुनि नवरत्नमल जी के द्वारा शासन-समुद्र भाग - १ - २५ तक में क्रमश: दीक्षावार तथा प्रत्येक आचार्य के काल के आधार पर लिखा जा चुका है जो कि अन्य परम्पराओं में देखने को नहीं मिलता है। इसके अतिरिक्त आचार्य तुलसी ने साधु व श्रावक के बीच की एक नई श्रेणी को जन्म दिया, जिसका नाम है- समण - समणी श्रेणी । इसका उल्लेख भी 'तेरपंथ समणी संस्था का विकास एवं अवदान' नामक शीर्षक में किया गया है। अष्टम अध्याय - उपसंहार है। इसमें सम्पूर्ण कृति का सार - २ - संक्षेप रूप में प्रस्तुत किया है। इस प्रकार हम देखते हैं कि यह विशालकाय ग्रन्थ अपने आप में कोश का कार्य कर रहा है, क्योंकि इसमें किसी को भी छोड़ा नहीं गया है। अधिक से अधिक जानकारी देने का साध्वीश्री ने जो अथक परिश्रम किया है उसके लिए वे साधुवाद की पात्र हैं। सुन्दर अक्षर-सज्जा के साथ प्रस्तुत यह ग्रन्थ प्रत्येक पाठक के लिए संग्रहणीय है। इस कृति के प्रणयन के लिए मैं व्यक्तिगत रूप से साध्वी श्री के प्रति आभार प्रकट करती हूँ कि उन्होंने उल्लेखनीय कार्य को अंजाम दिया है। डॉ० सुधा जैन, वरिष्ठ प्राध्यापक, पार्श्वनाथ विद्यापीठ १. अन्यथाख्यातिवादीया (विद्वत्संगोष्ठी), प्रका० - श्री वल्लभाचार्य ट्रस्ट, कंसारा बाजार, माण्डवी, कच्छ- ३७०४५६, संस्करण- प्रथम (वि०सं० २०५८), आकार - डिमाई, पृ० ६१७, मूल्य रु० १५०/ प्रस्तुत ग्रन्थ में श्री वल्लभाचार्य ट्रस्ट, माण्डवी - कच्छ, गुजरात द्वारा अन्यथाख्यातिवाद पर आयोजित विद्वत् परिचर्चा का संकलन है। इसमें विभिन्न विद्वानों के कुल १७ शोध-पत्र संकलित हैं। प्रारम्भ में श्री बालकृष्ण भट्ट विरचित 'ख्यातिवाद विवेक' और गोस्वामी श्री पुरुषोत्तम विरचित 'ख्यातिवाद' का अंकन किया गया है। दोनों ही लेख उच्च कोटि के ख्यातिवादीय परिचर्चा को समेटे हुए हैं। लेख संस्कृत

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