Book Title: Sramana 2007 04
Author(s): Shreeprakash Pandey, Vijay Kumar
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 239
________________ २३४ : श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३ / अप्रैल-सितम्बर २००७ जिनभाषित वाणी के अभिप्रेत अर्थ को ग्रहण कर गणधरों एवं उनके अनन्तर स्थविर मुनियों ने जिन्हे शब्द रूप में गूंथा वे ही ग्रन्थ 'आगम' नाम से जाने जाते हैं। आगम ज्ञान-विज्ञान का अपार भण्डार है जिसमें दर्शन, विज्ञान, साहित्य, आचारविचार आदि प्रत्येक क्षेत्र का समावेश स्वतः ही हो जाता है। योग का एक प्रमुख अंग है- अष्टाङ्गयोग, जिसकी चर्चा जैनागमों में विस्तृत रूप से प्राप्त होती है। लेखक ने योग सम्बन्धी इसी विवेचना को सरल एवं सहज भाषा में आम जन तक पहुँचाने का कार्य किया है। जैन विद्या के अनन्य साधक आचार्य शिवमुनिजी के सम्पादकत्व इस ग्रन्थ की महत्ता को और भी बढ़ा दिया है। आज जितनी भ्रान्तियाँ योग के विषय में हैं, शायद ही किसी अन्य विषय में हों । प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने उपोद्घात के अन्तर्गत योग शब्द का महत्त्व, योग की पतञ्जलिकृत व्याख्या, योग की आगमिक व्याख्या, हरिभद्रसूरि द्वारा की गयी योग- व्याख्या आदि को विवेचित किया है। 'जैनागमों में अष्टाङ्गयोग' के अन्तर्गत ध्यान के भेदोपभेद, धर्मध्यान, शुक्लध्यान और उसके अधिकारी, जैन योग में समाधि, पातञ्जल योग की विभूतियाँ, ओ३म् एवं सोऽहम् आदि पर सविस्तार प्रकाश डाला गया है। 'जैनागमों के सन्दर्भ में योग एक चिन्तन' के अन्तर्गत वैदिक, बौद्ध एवं जैन दर्शन में योग की चर्चा एवं धारणा, ध्यान, समाधि पर उत्कृष्ट विवेचना की गई है। 'ॐ कार : एक अनुचिन्तन' में ॐ कार की उच्चारण-विधि, ॐ कार ध्यान - विधि आदि का सविस्तार वर्णन किया गया है । 'आत्मशुद्धि की साधना- आगमिक धारा' के अन्तर्गत सोऽहं साधना, ध्यान, सम्यक् - दर्शन, ध्यान और जीवन आदि का उल्लेख है । ध्यान का क्रियात्मक स्वरूप एवं उपलब्धि शीर्षक के अन्तर्गत वैदिक, बौद्ध, जैन आदि की ध्यान-विधियों, उनका मानव जीवन पर प्रभाव की चर्चा सोदाहरण की गई है। अन्त में परिशिष्ट के अन्तर्गत आगमों में वर्णित योग चर्चा का अंकन किया गया है। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि इस छोटी-सी पुस्तक में विद्वान् लेखक एवं सम्पादक ने योग के सम्बन्ध में लोगों की भ्रान्तियों का निराकरण कर उसे वैज्ञानिक कसौटी के आधार पर आम सुधी-जन के लिए उपयोगी रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। आशा है ज्ञानपिपासु विद्वान् पाठक इस पुस्तक का एक बार अवश्य अध्ययन करेंगे और अपनी जीवन की समस्याओं से छुटकारा पाकर लाभान्वित होंगे। डॉ० राघवेन्द्र पाण्डेय दर्शन एवं धर्म विभाग, का०हि०वि०वि०, वाराणसी

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