________________
जैन जगत् : २२३
भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय संस्कृति संस्थान, दिल्ली में प्राकृत भाषा एवं साहित्य के १९ वें राष्ट्रीय ग्रीष्मकालीन विद्यालय उद्घाटन समारोह तथा आचार्य हेमचन्द्रसूरि तृतीय व्याख्यान सम्पन्न
दिनांक १३ मई २००७ । भोगीलाल लहेरचन्द भारतीय संस्कृति संस्थान, दिल्ली में १० राज्यों से अध्ययनार्थ ३६ छात्र-छात्राओं ने ग्रीष्मकालीन विद्यालय में भाग लिया।
मुख्य अतिथि डॉ० सुधा गोपालकृष्णन् (निदेशक, राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन, नई दिल्ली) ने संस्थान द्वारा चलाये जा रहे इस पाठ्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा की । उन्होंने कहा कि आज समग्र भारतवर्ष में लगभग ५० प्रतिशत जैन पाण्डुलिपियां प्राकृत भाषा में निबद्ध हैं। वे संस्थान में अध्ययनार्थ आये छात्र-छात्राओं का आह्वान किया कि आप सब अच्छी तरह से पढ़कर आगे आकर प्राकृत भाषा व साहित्य को सुरक्षित करें जिससे कि आने वाली पीढ़ी पाण्डुलिपियों से लाभान्वित हो सके।
इस अवसर पर 'आचार्य हेमचन्द्र स्मृति व्याख्यानमाला' की तृतीय कड़ी में डॉ० दयानन्द भार्गव (पूर्व अध्यक्ष, दर्शन विभाग, जोधपुर विश्वविद्यालय, राजस्थान) ने अपने विद्वत्तापूर्ण व्याख्यान में अनेकान्त की नई रीति से विशद् व्याख्या प्रस्तुत की।
डॉ० जितेन्द्र बी० शाह (निदेशक, लालभाई दलपत भाई भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर, अहमदाबाद) ने कहा कि प्राकृत भाषा में भारतीय संस्कृति छिपी हुई है। बिना प्राकृत जाने भारतीय संस्कृति का सम्यक् - ज्ञान नहीं हो सकता ।
पूज्य साध्वी सुनीताश्री जी महाराज द्वारा नमोकार महामंत्र, श्रीमती दीपशिखा जैन द्वारा सरस्वती वंदना एवं मुख्य अतिथि डॉ० सुधा गोपालकृष्णन्, श्रीमान् नरेन्द्र प्रकाश जैन, डॉ० जितेन्द्र बी० शाह, डॉ० दयानंद भार्गव एवं संस्थान के अध्यक्ष श्री विनोद भाई दलाल द्वारा दीप प्रज्वलन से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। संस्थान के उपाध्यक्ष श्रीमान् नरेन्द्र प्रकाश जैन ने विजयवल्लभ स्मारक का परिचय एवं संस्थान की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। श्री देवेन यशवंत (कोषाध्यक्ष, बी०एल० आई० आई०, दिल्ली) ने व्याख्यानमाला तथा वक्ता का परिचय दिया। कार्यक्रम के अन्त में डॉ० जयपाल विद्याशंकर (पूर्व निदेशक, बी० एल० आई० आई०, दिल्ली) ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ० बालाजी गणोरकर (कार्यकारी निदेशक, बी० एल० आई० आई०, दिल्ली) ने किया।