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धार्मिक सहिष्णुता और धर्मों के बीच मैत्रीभाव - जैन- दृष्टिकोण : ३५
दार्शनिक दृष्टिकोण एवं विचारधाराएं भी भिन्न-भिन्न हैं । इन सब विविधताओं के बीच भी मानवीय एकता का एक सामान्य सूत्र है, जो हम सभी को आपस में जोड़ता है। और वह मानवता के अलावा दूसरा कुछ भी नहीं हो सकता है। हम सभी उसी मानवजाति से संबंधित हैं। दुर्भाग्य से वर्तमान में हमने मानवता को तो गौण कर दिया है और जाति, रंग तथा पंथ-भेद पर आधारित आपसी मतभेद हमारे लिए अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है। हम सभी अपनी मूलभूत एकता को भूल चुके हैं और इन ऊपरी तौर पर दिखाई देने वाली भिन्नताओं को आधार बनाकर आपस में लड़ रहे हैं, परन्तु हमें एक बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि केवल मानवता ही एक ऐसी कड़ी है, जिसके आधार पर ही भिन्न-भिन्न आस्थाओं, धर्मों, संस्कृतियों और राष्ट्रीयताओं के लोगों को आपस में जोड़ा जा सकता है। जैनाचार्यों ने मानव जाति का प्रतिपादन किया है। (एगे माणुस जाइ) वस्तुत:, जाति, रंग और पंथ-भेद संबंधी मतभेद न केवल सतही हैं, अपितु मन की ही उपज हैं। ये भेद रेखाएं स्वयं हमने खींची हैं।
सच्चा धर्म क्या है ?
सभी धर्मों का मूल लक्ष्य तो प्रत्येक व्यक्ति के लिए शाश्वत शांति एवं आनंद को सुनिश्चित करना और मानव समाज में सामन्जस्य स्थापित करना ही है । यद्यपि विश्व-इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि धर्म के नाम पर अनगिनत युद्ध लड़े गए हैं, जिनमें मानव जाति का अपरिमति खून बहा है। नि:संदेह, इसके लिए धर्म नहीं, अपितु तथाकथित रूप से धार्मिक कहे जाने वाले या धर्म के नाम पर अपने हितों का पोषण चाहने वाले व्यक्ति ही इन जघन्य दुष्परिणामों के लिए जिम्मेदार हैं। वर्तमान में धर्म को तो पृष्ठभूमि में धकेल दिया गया है और केवल निजी या राजनीतिक लाभ लिए ही उसका एक साधन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है | यदि कोई यह समझता है कि केवल उसका धर्म, उसकी साधना-पद्धति या उसकी राजनीतिक विचारधारा ही मानव समाज में सुख-समृद्धि और शांति बहाल करने का एकमात्र विकल्प है, तो वह अपने विरोधियों की विचारधारा के प्रति कभी भी सहिष्णु नहीं हो सकता है, अतः मानव समाज में एक-दूसरे के प्रति सहिष्णुता एवं मैत्रीभाव को अविलंब विकसित करने की आवश्यकता है। केवल यही एकमात्र उपाय है, जिसके द्वारा समाज में शांति और सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है।
क्या कोई भी धर्म जिसमें जैनधर्म भी सम्मिलित है, अकेले ही हमारे युग की चुनौतियों का सामना कर सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर देने से पहले हमें वास्तविक धर्म और मिथ्या-धर्म के अन्तर को समझना होगा। चूँकि सच्चा धर्म कभी भी हिंसा, असहिष्णुता, धार्मिक-कट्टरता का समर्थन नहीं करता है, अतः धर्म के नाम पर अपने