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आप्तोपदेश: शब्द: की जयन्त भट्टीय व्याख्या : ५९
होगी। जयन्त भट्ट इस प्रश्न का भी समाधान प्रस्तुत करते हैं और कहते हैं कि प्रतीति सदा संविदात्मक ही होती है, किन्तु करण-भेद से भिन्न-भिन्न स्वरूप वाली हुआ करती हैं। चक्षुरादि से उत्पन्न प्रतीति प्रत्यक्ष और श्रोत्रग्राह्य वस्तु (शब्द या वर्ण-राशि) से उत्पन्न प्रतीति शब्द है। अत: प्रतीति के सर्वदा होते हुए भी उसकी भित्र-रूपता का निषेध नहीं किया जा सकता। दृश्यते, अनुमीयते, अभिधीयते - ये शब्द एकदूसरे के पर्याय नहीं हैं, वरन् इनमें अर्थ-भेद है।२२ इसलिए एक विशेष प्रकार की प्रतीति को उत्पन्न करने में जो करण बने, वह उपदेश होता है और उस प्रतीति विशेष का स्वरूप श्रोत्रग्राह्य वस्तु जन्य प्रतीति होगा, जो अन्य प्रत्यक्ष अनुमित्यादि प्रतीतियों से भिन्न स्वभाव का होगा। आकाशानुमान में शब्द की लिंगता तो होती है, परन्तु शब्द-लिंग जन्य आकाशानुमिति रूप प्रतीति शाब्द नहीं होती है, अत: यहाँ भी अभिधान-क्रिया की अतिव्याप्ति न होगी। इसलिए जयन्त भट्ट ने यह निर्विवाद रूप से सिद्ध किया है कि उपदेश वह अभिधान-क्रिया है जो श्रोत्रग्राह्य वस्तु से जन्य है और श्रोत्रग्राह्य वस्तु से उत्पन्न प्रतीति रूप है। २३
जयन्त भट्ट ने सामान्यतया भाष्यकार द्वारा किये गये आप्त लक्षण२४ की विवेचना प्रस्तुत की है। स्वयं प्रत्यक्षादि प्रमाणों से किसी विषय का प्रमाता यथादृष्ट उस प्रमेय अर्थ स्थापना करने की इच्छा से प्रवृत्त होकर जब उपदेश करता है, तब उसे आप्त कहते हैं। आप्तता के लिए चार बातें आवश्यक हैं -
१) उपदेष्टा उपदेष्टव्य विषय के बारे में प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान या शब्द में से किसी भी प्रमाण द्वारा यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर चुका हो।
२) उपदेष्टा जिस साक्षात्कृत अर्थ का उपदेश कर रहा है, उसका वैसा ही उपदेश हो, जैसा कि उसने अपने साक्षात्कार के द्वारा जाना है, विषय की अतिशयोक्तिपूर्ण या अपूर्ण या पक्षपातपूर्ण उपदेश न हो।
३) वक्ता वीतराग हो। यह हो सकता है कि स्वयं साक्षात्कृतधर्मा होने पर भी वक्ता की किसी पक्ष विषय के प्रति विशेष राग या द्वेष हो, जिससे वह यथादृष्ट अर्थ का उपदेश तोड़-मरोड़ कर भिन्न प्रकार से करे, अत: उसकी आप्तता संदिग्ध हो जायेगी। ऐसी स्थिति के निवारण के लिए ही 'चिख्यापयिषया प्रयुक्तः' पद का ग्रहण हुआ है।
४)आप्तता के लिए आवश्यक है कि वक्ता में प्रतिपादन कौशल हो, अर्थात् वह दृष्ट अर्थ का तथैव उपदेश कर सके। किसी विषय का साक्षात्कृतधर्मा वीतराग मूक प्रमाता प्रतिपादन कौशल के अभाव में उपदेष्टा नहीं होगा।