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१२. हिन्दी व्याख्या- ४ भाग, सम्पा०
१३. हिन्दी - गुजराती अनुवाद, अनुवादक - मुनि घासीलाल जी, जैन शास्त्रोद्धार समिति राजकोट, १९७४.
१.
२.
३.
१४. आगमसुधा-सिन्धु, भाग ५, जिनेन्द्र विजयगणि, हर्षपुष्पामृत जैन
ग्रन्थमाला, लाखावावल - १९७६.
४.
श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३ / अप्रैल-सितम्बर २००७
सूर्यप्रज्ञप्ति - चन्द्रप्रज्ञप्ति
सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति क्रमश: छठा - सातवां उपांग है। कई ग्रन्थों में सूर्यप्रज्ञप्ति को पांचवा तथा चन्द्रप्रज्ञप्ति को सातवां उपांग कहा जाता है। सूर्यप्रज्ञप्ति एवं चन्द्रप्रज्ञप्ति को हम गणित, ज्योतिष, भूगोल व खगोल का महत्त्वपूर्ण कोश कह सकते हैं। सूर्यप्रज्ञप्ति में सूर्य आदि ज्योतिष्क चक्र का वर्णन है, इसमें एक अध्ययन, २० प्राभृत, उपलब्ध मूलपाठ २२०० श्लोक परिमाण है। गद्यसूत्र १०८, पद्यगाथा १०३ है | चन्द्रप्रज्ञप्ति में चन्द्रज्योतिष्क चक्र का वर्णन है। इनके प्रकाशित संस्करण निम्न हैं
५.
६.
मुनि मिश्रीमलजी मधुकर, आग
७.
प्रकाशन समिति, व्यावर, (राज० ) १९८८.
८.
मलयगिरिवृत्ति- आगमोदय समिति, बम्बई, ई० सन् १९१९. मूल (रोमन लिपि) J. F. Kohl, Stuttgart, 1937.
हिन्दी अनुवाद, अनुवादक- अमोलक ऋषि हैदराबाद, वी० सं०
२४४५.
हिन्दी - गुजराती अनुवाद, अनुवादक- मुनि घासीलाल, जैन शास्त्रोद्धार समिति, राजकोट १९७३.
उवंगसुत्ताणि, खण्ड १, सम्पा० आचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं, (राज०), ई० सन् १९८७.
हिन्दी व्याख्या, सम्पा०- • मुनि मिश्रीमल जी मधुकर, आगम प्रकाशन समिति, व्यावर, १९८५.
आगमदीप, भाग-४, गुजराती अनुवाद, अनुवादक- मुनि दीपरत्नसागर आगमदीप प्रकाशन, अहमदाबाद।
आगमसुत्ताणि मूल, सम्पा०- मुनि दीपरत्नसागर, आगमश्रुत प्रकाशन, अहमदाबाद, (गुज० ) |