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श्रमण, वर्ष ५८, अंक २-३/अप्रैल-सितम्बर २००७
५. त्थ प्रत्यय - प्राकृत में त्रप् प्रत्यय के स्थान पर हि, ह तथा त्थ आदेश होते हैं।५° इन प्रत्ययों में से कालिदास ने अपने नाटकों में प्राकृत के केवल त्थ प्रत्यय का ही प्रयोग किया है। उदाहरणार्थएत्थ
कहं, एत्थ५१ तक्केसि। एत्थ५२ क्खु भत्तुणो सीसम्हि। भट्टा एत्थ५३ पविसदि। जुज्जइ देवी एत्थ५४ माणइदव्वा। एत्थ५५ तुमं एव्वं पमाणं। सच्चं अअं एत्थ५६ बह्मबन्धुणा किदो पओओ। दुवे वि णो एत्थ५७ प्पिआ उवणदा। एत्थ५८ पिअआरिणं संभावेम्ह राएसिं। जं एत्थ५९ अहिलिहिदं तं सुणिदुं इस्सामि एत्थणोः समभाआमदी। एत्थ६१ वा भवे। किं एत्थ६२ करणिज्ज। ता भविदव्वदा एत्थ६३ बलवदी। अलं एत्थ६४ घिणाए। एत्थ६५ पओहरवित्थारइत्तअं अत्तणो जोव्वणं उवालह। एथ६ एव्व दाव मुहुत्तअं चिट्ठ। एत्थ६७ उवविसम्ह।
एत्थ६८ अज्ज तादो संणिहिदो भवे। तत्थ
ण तत्थ६९ खहिअदि ण पीअदि। ६. दो प्रत्यय - प्राकृत में तस् प्रत्यय के स्थान पर विकल्प से तो तथा दो आदेश होते हैं। इन दोनों आदेश युक्त प्रत्ययों में से कालिदास ने अपने नाटकों में प्राकृत के केवल दो प्रत्यय का ही प्रयोग किया है। कुछ प्रयोग द्रष्टव्य है
अदो अवरं ण जाने। तुम वि अदो७२ पेसलदरं साहुजणसुस्सूसाए फलं पावेहि।
अदो